राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बहाने कारसेवकों तक पहुंची मीडिया

22 जनवरी, 2024 के दिन जैसे ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने की तिथि निर्धारित हुई, उसके बाद देशभर का मीडिया तंत्र एक बार फिर सक्रिय होता दिखा। जिसके प्रमाण सबके सामने हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने मीडिया कारसेवकों या कारसेवकों के परिवारों तक पहुंचा। देशभर में प्रिंट और डिजिटल मीडिया में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व सैंकड़ों कारसेवकों की स्टोरी हमें देखने और पढ़ाने को मिली। कई कारसेवक तो गुमनाम ही थे, जिसके बारे में आज के दौर में ज्यादा लोगों को जानकारी ही नहीं थी। ऐसा की उदाहरण हिमाचल के मंडी शहर के एक वैद्य परिवार के दो सदस्यों है, जो राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या आए, लेकिन आज तक वापिस नहीं आए। वर्तमान युवा पीढ़ी अर्थात 35 वर्ष से नीचे आयु वर्ग वाले युवाओं के लिए कारसेवकों की इस प्रकार की कहानियां प्रकाशित होना किसी नए अध्याय के बारे में जानने के समान था, क्योंकि इस आयु वर्ग के युवाओं ने सिर्फ किसी के माध्यम से ही आधी अधूरी कहानियां ही कारसेवकों के बारे में सुनी थी या मीडिया के माध्यम से टीवी पर देखी थी। जहां तक राष्ट्रीय परिपेक्ष की बात की जाए तो राजनीति क्षेत्र के कुछ प्रमुख चेहरों के बारे में ही मीडिया राम मंदिर आंदोलन के बारे में दिखाता रहा है, लेकिन कई मीडिया समूहों ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व स्थानीय संस्करणों में कारसेवकों को प्रमुखत्ता से प्रकाशित किया। जिससे कारसेवकों या उनके परिवार के सदस्यों के बारे में जानने का वर्तमान युवा वर्ग को एक अवसर मिला। जिसमें प्रिंट मीडिया ने सबसे अहम भूमिका निभाई। इसके अनेकों उदाहरण हमें देखते को मिली। हिमाचल जैसे छोटे प्रदेश से भी राम मंदिर आंदोलन या 1990 और 1992 के बीच सक्रिय भूमिका निभाने वाले कारसेवकों के बारे में प्रिंट मीडिया में उस समय कोई ज्यादा खबरें प्रकाशित नहीं हुई है, क्योंकि उस दौर में हिमाचल में प्रिंट मीडिया नाममात्र की भूमिका में था। आज के दौर जैसे कोई मीडिया समूह यहां सक्रिय नहीं था। चंडीगढ़ या जालंधर से कुछ समाचार प्रकाशित होकर यहां आते थे, लेकिन अध्योया में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने हिमाचल के कारसेवकों के बारे में यहां के लोगों को जानने का एक मौका मिला, जिसमें मीडिया की सबसे अहम भूमिका रही है या यह भी बोल सकते हैं कि इस बहाने मीडिया हिमाचल के कारसेवकों या उनके परिवारों तक पहुंचा। जिनके बारे में हिमाचल के लोग कुछ नहीं जानते थे।

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