समस्या ही नहीं समाधान की बात भी करे मीडियाः के.जी. सुरेश

वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली, के पूर्व महानिदेशक प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि अब पत्रकारिता सिर्फ समस्या ही नहीं, बल्कि समाधान की भी बात करे। दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (डीजेए) और गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के संयुक्त तत्वावधान में 27 मई, 2020 को अहिंसात्मक संवाद पर आयोजित एक वेबिनार में उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि मीडिया में सिर्फ नकारात्मक दृष्टि पर ही ध्यान केन्द्रित रहेगा तो वह समाज में रचनात्मक उर्जा का संचार नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि समाधान-परक पत्रकारिता को पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाए और विशेषज्ञों से बात करके इसका पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए।

 

वेबिनार में उपस्थित दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन और नेशनल यूनियन ऑफ (इंडिया) के पदाधिकारियों ने देशभर में अहिंसात्मक संवाद आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। वेबिनार में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के कार्यक्रम अधिकारी डा. वेदाभ्यास कुंडु, नेशनल यूनियन ऑफ (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री मनोज मिश्र, कोषाध्यक्ष व आकाशवाणी नई दिल्ली में सलाहकार श्री उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार एवं बहुचर्चित पुस्तक ‘द फ्यूचर न्यूजरूम’ व ‘आधुनिक भारत के गुमनाम समाज-शिल्पी’ सहित करीब एक दर्जन पुस्तकों के लेखक डा. प्रमोद कुमार, दिल्ली  जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एव पीटीआई-भाषा के वरिष्ठ पत्रकार श्री मनोहर सिंह, डीजेए के महासचिव तथा ‘जनसत्ता’ के वरिष्ठ पत्रकार श्री अमलेश राजू सहित दिल्ली, चंडीगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित देश के अनेक हिस्सों से 100 से अधिक लोगों ने वेबिनार से जुड़कर अहिंसात्मक संवाद को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। वेबिनार का संचालन डीजेए अध्यक्ष श्री मनोहर सिंह ने किया।

 

प्रो. के.जी. सुरेश ने भारतीय जनसंचार की अवधारणा परविस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि वेद और उपनिषद काल में संचारकिस प्रकार होता था। उन्होंने कहा कि जनसंचार की भारतीय अवधारणा कभी भी नकारात्मक नहीं रही है , बल्कि इसने रचनात्मक भूमिका निभायी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज हमें बुद्ध, विवेकानन्द और महात्मा गांधी सहित भारतीय महापुरूषों के संचार मॉडल को अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मीडिया की भूमिका सिर्फ सूचना प्रदान करना नहीं, बल्कि लोगों को सुशिक्षित करना भी है।

 

चर्चा की शुरूआत करते हुए डा. वेदाभ्यास कुंडु ने अहिंसात्मक संवाद के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और महात्माबुद्ध के सह-अस्तित्व तथा करूणा के सिद्धांतों की चर्चा की। महात्मा गांधी को अहिंसात्मक संवाद का सबसे बड़ा प्रस्तोता बताते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में गांधीजी ने अंग्रेजों के साथ संवाद के सभी मार्ग सदैव खुले रखे। उन्होंने कहा कि गांधी जी के अहिंसात्मक संवाद को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।

 

श्री मनोज मिश्र ने चंपारण में महात्मा गांधी द्वारा अहिंसात्मक ढंग से किये गये आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि किसानों और अंग्रेज अधिकारियों से बात करते हुए उन्होंने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया और न ही कभी लोगों को कानून हाथ में लेने के लिए उकसाया। उन्होंने कहा कि मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। वह मामले को भड़का भी सकती है और तनाव को समाप्त भी कर सकती है।

 

विभिन्न टेलीविजन समाचार चैनलों में प्रसारित समाचारों में जारी ‘तमाशा संस्कृति’ का जिक्र करते हुए  श्री उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि इस समय कोविड-19 संकट के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्या का शांतिपूर्वक ढंग से समाधान निकल सकता था, परन्तु टेलीविजन मीडिया ने अफवाहों को फैलने में मदद की और लोगों को सही जानकारी न देकर भ्रम को और बढ़ाया।

 

सुप्रसिद्ध लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार डा. प्रमोद कुमार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए विस्तार से बताया कि दोनों ही महापुरूष मीडिया की रचनात्मक भूमिका को लेकरकितने सजग थे और उन्होंने किस प्रकार मीडिया के माध्यम से समाज के रचनात्मक पक्ष को उजागर करने में सक्रिय भूमिका निभायी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जिक्र करते हुए उन्होंने मीडिया में भाषा की मर्यादा का ध्यान रखने की जरूरत पर भी जोर दिया। इसके अलावा उन्होंने कहा कि समाज के रचनात्मक पक्ष को उजागर करने, अंहिंसात्मक संवाद को बढ़ावा देने और मीडिया में भाषा की मर्यादा जैसे विषयों को मीडिया पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाए ताकि भावी पत्रकार प्रारंभ से ही इन गुणों से युक्त होकर मीडिया में प्रवेश करें।

 

चर्चा में मधेपुरा बिहार से गांधी ज्ञान मंदिर के वरिष्ठ गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता श्री दीना नाथ प्रबोध सहित नेशनल यूनियन ऑफ (इंडिया) के महासचिव श्री सुरेश शर्मा, एनयूजे स्कूल के अध्यक्ष श्री अशोक मलिक सहित अनेक पत्रकारों ने भाग लिया।

 

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