समसामयिक परिप्रेक्ष्य में जहां चारों ओर से सही-गलत सूचनाओं की बमबारी हो रही है, विश्वसनीयता का प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो उठा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह तथ्य और भी स्पष्ट होकर सामने आया है। जानकारी कितनी सही है, उसके उद्गम के स्रोत क्या हैं और उसे किसने कहा या लिखा है, इसे जाने बिना आगे बढ़ाना या सही समझना जानकारी के युद्ध में शहीद होने जैसे ही है । वर्तमान संदर्भ में भारत का यही इकलौता छोर है, जहां लापरवाही स्पष्ट रूप से दिखती है।
किसी भी संघर्ष के अंत में ‘सत्यमेव जयते’ तो कह दिया जाता है, किन्तु अगर सत्य को झूठ की अनगिनत परतों से ढक दिया जाए तो सत्य जीत कर भी कुछ एक लोगों तक सीमित रह जाता है। हाल ही का उदाहरण लें तो भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा प्रयोग किए जाने वाले चीनी रक्षा उपकरणों को पूरी तरह नष्ट कर दिया किन्तु विदेशी मीडिया, उसमें काम करने वाले पाकिस्तानी, चीनी और भारत विरोधी देशों के पत्रकारों ने भारत के विपरीत विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया जिस कारण भारत का पक्ष काफी लंबे समय तक विश्व पटल पर अच्छे से सामने ही नहीं आ पाया।
सरकार की ओर से प्रधानमंत्री का सेना के ‘आदमपुर बेस’ से ऑपरेशन सिंदूर के बाद संकेतात्मक तरीके से पाकिस्तान के दावों की धज्जियां उड़ाना हो या विपक्ष के नेताओं को विश्व के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए भेजना, एक अच्छी शुरुआत तो है किन्तु अभी भी भारत, सरकारी तंत्र के अतिरिक्त, अपना पक्ष तक रखने के लिए बड़े, गंभीर और समर्पित प्लेटफ़ार्म नहीं बना पाया है, न ही चीन की तरह इस दिशा में अपने संसाधनों का प्रयोग करता हुआ दिखता है।
जिस प्रकार चीन अपने संसाधनों का प्रयोग कर भारत और विश्व के कई देशों की सिविल सोसाइटी, पत्रकार, विश्वविद्यालयों, शोधकर्ताओं, और प्रभाव रखने बाले लोगों को चीन या चीन को फायदा देने वाले विमर्श को लिखने और बढ़ाने पर पैसा खर्च करता है, वैसा कोई तंत्र होना तो दूर भारत में इस ओर अभी सही ढंग से बात भी नहीं शुरू हुई है।
इसके साथ ही विदेशी मीडिया में भारत की छवि बनाने वाले भारतीय मूल के पत्रकारों की भी कमी दिखती है। जो हैं भी वह पूरी तरह भारत विरोध के वायरस से ग्रसित प्रतीत होते हैं। भारत विरोध का यह वायरस दो स्तरों पर कार्य करता है, एक भारत के मनोबल को गिराने के लिए बड़े स्तर पर भ्रामक जानकारी को फैला कर, विश्व में भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास करता है। दूसरा भारत के ही अंदर रह कर भारत को तोड़ने वाले विचार और व्यक्तियों को बढ़ावा देकर विखंडन की जमीन तैयार करता है। यही भारत के अंदर भारत को तोड़ने बाला प्वाइंट फाइव फ्रंट है, जो कभी कॉमेडी का प्रयोग करता है कभी सिनेमा और साहित्य का, जिसके लिए भारत से अधिक ‘यूनिवर्सलिज्म’ वाला मार्क्सवादी यूटोपिया आवश्यक है। भारत और भारत जैसे कभी कॉलोनी रहे देश इसकी पूर्ति की प्रयोगशाला से अधिक कुछ नहीं होते। प्वाइंट फाइव फ्रंट का उद्देश्य किसी देश को तोड़ने से अधिक कुछ नहीं होता। विदेशी देश और विचार अपने लघु या दीर्घकालिक योजनाओं की पूर्ति के लिए इसका प्रयोग करते है। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री का गरीब घर से होना राजनीति है जबकि बुरहान वानी हेडमास्टर का बेटा होने को संवेदना पैदा करने के लिए लोगों के सामने जोर-शोर से रखा जाता है। बाद में एक ऐसी मनःस्थिति बना दी जाती है कि कई लोगों को यह लगने लगता है कि वह समाज से अलग या विपरीत सोच रहा है, इसलिए वह सही है। प्रभावित व्यक्ति के सही होने का इसके अतिरिक्त कोई ठोस तर्क नहीं होता। कुल मिलाकर, सकारात्मक बात को अनदेखा करने का हर संभव प्रयास करने के बाद भारत के पक्ष की हर स्थिति में केवल समस्या को ही चिह्नित करना, भारत विरोधी विमर्श बना कर केवल नकारात्मकता देखने और दिखने को तटस्थता का पर्याय बना दिया जाता है । ऐसे स्थिति में पहुँच कर व्यक्ति देश के विरोध करने को ही तटस्थ होना समझने लगता है। ऐसा व्यक्ति प्वाइंट फाइव फ्रंट का सबसे आसान शिकार बनता है । उसे थोड़े से नाम और लोभ से भ्रमित किया जा सकता है और इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके कारण लोगों की एक ऐसी सेना खड़ी होती है जो भारत विरोध को भारत का भला समझती है।
समकालीन सभ्यताओं का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन रहने वाले तीसरे दुनिया की संज्ञा से विभूषित देशों में ‘कोलोनियल’ मानसिकता का प्रभाव है, जिस कारण इन देशों से संबंध रखने वाले लोग अपनी संस्कृति को हीनता से देखने और विरोध करने को लिबरल होना समझते हैं। अमरीकी गृह युद्ध के समय में लोगों का मनोबल बढ़ाए रखने के लिए अखबारों का सहारा लेकर जीत को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता था। इस प्रोपेगैंडा के अंतर्गत समाज और लोगों की एक राय बनाई जाती थी। जानकारी फैलाने वाला स्त्रोतों पर यदि शत्रु का वर्चस्व हो तो जीत होने के पश्चात भी भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
ऐसा ही प्रयास ऑपरेशन सिंदूर की भारत विजय के पश्चात चीन और पाकिस्तान द्वारा एक बड़े स्तर पर किया गया। यह सुखद है कि भारत के अंदर इस विमर्श को पहली बार मुंह तोड़ जवाब दिया गया। प्वाइंट फाइव फ्रंट पर विजय के लिए वैश्विक स्तर पर एक लम्बा रास्ता तय करना बाकी है किन्तु ऑपरेशन सिंदूर के बाद समाज के स्तर पर एक सुगबुगाहट तो पैदा हो ही गई है। सरकारी प्रयास भी जल्द प्रारंभ हो तो देश की सुरक्षा और भी दृढ़ हो जाएगी।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
Comments

By Abhishek, Rating Very Good
2025-05-26 03:46:54
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