सच्चाई की फेक फैक्ट्री

जब फेक न्यूज की फैक्ट्री ही फेक न्यूज के खिलाफ मुहिम चलाती है, और कहती है कि हम फेक न्यूज के लिये चिन्तित हैं, तब यह हास्यास्पद भी लगता है, अचम्भित भी करता है, और वाकई चिन्तित भी करता है। जिस पर पूर्वाग्रह, नस्लवाद, तथ्यों से छेड-छाड के आरोप लगते रहे हों, जो लगातार विवादों में रहा हो, जिसे हमेशा आलोचनाओं का सामना करना पडा हो। ऐसे में उसके प्रति संशय पैदा होना स्वाभाविक बात है।

जी हाँ। मैं बात कर रहा हूँ बीबीसी की। हाल ही में बीबीसी ने यह दावा किया कि उसने भारत में फेक न्यूज पर एक रिसर्च की है, जिसके बाद बीबीसी ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बीबीसी के अनुसार फेक न्यूज फैलाने में चार चीजें मुख्य रुप से सामने आई, पहली हिंदू सुपीरियॉरिटी (श्रेष्ठता), दूसरी हिन्दू धर्म का पुनरुथान, तीसरी राष्ट्रीय अस्मिता व गर्व और चौथी एक नायक का व्यक्तित्व (नरेन्द्र मोदी)।

इस पूरी रिपोर्ट में राष्ट्रवाद (राष्ट्रीय अस्मिता गर्व) शब्द को चुना गया और बताया गया कि भारत में फर्जी समाचार (फेक न्यूज) राष्ट्रवाद की आड में फैलाया जा रहा है। बीबीसी द्वारा भारत में फेक न्यूज पर किया गया सर्वे और उसकी रिपोर्ट में कितनी साफगोई और सावधानी बरती गई है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बीबीसी द्वारा फेक न्यूज की एक ही रिपोर्ट अब तक ‘तीन बार’ जारी की जा चुकी है। पहली बार जब यह रिपोर्ट जारी की गई तो उसमें बीबीसी ने ‘दिवालिया कानून’ का मतलब बताया कि ‘दिवाली के दौरान कानून बदल रहा है’, जिसके बाद बीबीसी ने दूसरी बार जारी की गई रिपोर्ट में लिखा कि हमने हिन्दी शब्द दिवालिया के अनुवाद में त्रुटि की है व इसे सही किया गया है। पहली रिपोर्ट में पेज नं. 88 जिसमें दि बेटर इंडिया नामक वेबसाइट को उन नामों में जोड दिया, जो नाम बीबीसी को लगता है कि वे बीजेपी समर्थक समूह हैं और फेक न्यूज फैलाने के लिए जाने जाते हैं। दि बेटर इंडिया ने इस पर आपत्ति जताई जिसके बाद बीबीसी को अपनी दूसरी बार जारी की गई रिपोर्ट में दि बेटर इंडिया का नाम हटाना पडा। बात यहीं पर खत्म नही हुई, इसके बाद बीबीसी ने दि बेटर इंडिया से ई-मेल के जरिये ‘माफी मांगी’, जिसे दि बेटर इंडिया ने 17 नवंबर 2018 को अपने ट्विटर अकाउंट से सार्वजनिक किया।

बीबीसी द्वारा फेक न्यूज की एक ही रिपोर्ट जब दूसरी बार अपडेट्ड रुप में जारी की गई तो, इसमें भी खामियाँ कुछ कम नहीं थी। दूसरी रिपोर्ट पेज नं. 87 के दूसरे पैराग्राफ में लिखा है कि ‘30 स्त्रोत बीजेपी समर्थक समूह जिन्होने कम से कम एक बार तो फेक न्यूज फैलाई है’। (जिनके नाम पेज नं. 88 में हैं) बीबीसी की तीसरी रिपोर्ट जारी होती है, जिसमें दूसरी रिपोर्ट के 30 स्त्रोत 29 स्त्रोत में बदल जाते हैं। दूसरी रिपोर्ट पेज नं. 88 में नाम तो 32 हैं पर ग्राफ में 33 दिखाये गये हैं, जबकि उन नामों की संख्या 34 दिखायी गई है, इसमें भी वन्दे मातरम् नाम दो बार लिखा गया है, यह नाम वाकई में दो बार है या नहीं, यह तो बीबीसी ही जाने (तीसरी रिपोर्ट में भी वन्दे मातरम् नाम दो बार है)। दूसरी रिपोर्ट के पेज नं. 92 में जिसमें ग्राफ और संख्या में 11 जबकि नाम केवल 10 दिखाये गये हैं। इसके बाद बीबीसी अपनी तीसरी अपडेट्ड रिपोर्ट जारी करता है। इसमें भी बीबीसी गलतियों को मानने की जगह सफाई देने की कोशिश कर रहा है।  भारत में फेक न्यूज पर बीबीसी की यह रिपोर्ट न हुई, प्ले स्टोर की ऐप हो गई, जो बार-बार अपडेट मांग रही है।  

बीबीसी ने फेक न्यूज फैक्ट्री होने का एक उदाहरण स्वयं ही इस रिपोर्ट में दिया है, जिसमें खुद बीबीसी एक भ्रामक और फेक न्यूज फैला रहा है। पेज नं. 72 में फोटो नं. 13 जिसमें बीबीसी लिखता है कि, ‘भ्रामक संदेश का दावा है कि दिवालिया कानून बदलने के कारण 2100 कंपनियों ने 83 हजार करोड रुपये बैंको का लोन लौटाया है’। जबकि असल में यह खबर सत्य है, और इसकी पुष्टि टाइम्स ऑफ इंडिया समेत कई अन्य बडे मीडिया चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं ने की है।

बीबीसी फेक न्यूज फैक्ट्री का एक और उदाहरण इसी रिपोर्ट में मिलता है। पेज नं. 88 में बीबीसी के अनुसार बीजेपी समर्थक समूह जो फेक न्यूज फैलाते हैं, उनमें ‘वायरल इन इंडिया’ (viralinindia) नामक एक फेसबुक पेज भी शामिल है, जबकि यह फेसबुक पेज असल में कांग्रेस समर्थक फेसबुक पेज है और इसकी पुष्टि ‘प्रतीक सिन्हा’ ने 16 नवंबर 2018 को अपने ट्विटर अकाउंट से की है। यह वही प्रतीक सिन्हा हैं, जो अल्ट न्यूज के सह-संस्थापक हैं। जिसके बारे में पेज नं. 100 में बीबीसी ने लिखा है, कि फेक न्यूज की पहचान के लिए ‘तथ्य जांच साइट’ का उपयोग किया गया है, जिनमें तथ्य जांच साइट ‘अल्ट न्यूज’ (altnews) भी शामिल है।

बीबीसी डिजिटल हिन्दी के संपादक राजेश प्रियदर्शी के न्यूजलॉन्ड्री में दिये गये साक्षात्कार के अनुसार बीबीसी ने राष्ट्रीय स्तर पर कोई सर्वेक्षण नहीं किया है और दस अलग-अलग शहरों से विभिन्न आयु, आय व लिंग (जेंडर) के 40 लोगों के सोशल मीडिया व्यवहार को परखा गया है और जिन लोगों का साक्षात्कार लिया गया उन्हे यह नहीं कहा कि बीबीसी फेक न्यूज के बारे में कोई रिसर्च कर रहा है, वे आगे कहते हैं कि बीबीसी की यह रिसर्च कोई अन्तिम सत्य नहीं है।

बीबीसी की इस रिपोर्ट में कार्यरत् पीएचडी डिग्रीधारक व अन्य ज्ञानियों ने दिवालिया कानून को दिवाली के त्यौहार से जोड दिया, यही नही इस कानून को ही भ्रामक संदेश बता दिया। बीबीसी तो यह भी भूल गया कि उसने खुद 12 मई 2016 को दिवालिया कानून को व्यवसाय के लिए अच्छा बताया था। एक ही रिपोर्ट को तीन बार बदला जाना, ग्राफ, नाम, संख्याओं में गलती करना, दि बेटर इंडिया वेबसाइट से माफी मांगना और फिर उसे एक मानवीय भूल करार देना, दूसरी बार जारी अपडेट्ड रिपोर्ट में 30 स्त्रोत और तीसरी बार जारी अपडेट्ड रिपोर्ट में 29 स्त्रोत का बदल जाना, और यह कहना कि स्त्रोतों ने कम से कम एक बार तो फेक न्यूज फैलाई है, बिना कोई राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे किये और जमीनी स्तर पर मात्र 40 लोगों के सोशल मीडिया व्यवहार को परख कर उसे फेक न्यूज रिसर्च बताना, ऐसी कई अन्य चीजें दर्शाती है कि बीबीसी की यह रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय है और बीबीसी इस रिपोर्ट के प्रति और भारत व भारतीयता के प्रति कितना संवेदनशील है। एक तरफ बीबीसी कहता है कि यह रिसर्च कोई अन्तिम सत्य नहीं है और दूसरी तरफ कहता है कि भारत में राष्ट्रवाद की आड में फेक न्यूज फैल रही है। भारत के प्रति बीबीसी की मनसा और मानसिकता बीबीसी पहले भी कई बार दिखा चुका है। इस रिपोर्ट से तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि बीबीसी ने अपना निष्कर्ष पहले से तैयार रखा था, बस रिपोर्ट आनन-फानन में तैयार कर दी।

बीबीसी डिटॉल (Dettol) का धुला नहीं है। हमेशा की तरह इस बार भी बीबीसी को आलोचनाओं का सामना करना पडा, बीबीसी को माफी भी मांगनी पडी, कुल मिलाकर बीबीसी की खूब भद्द पिटी है। अन्त में बीबीसी से सतर्क रहें, सावधान रहें।

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