मीडिया के मालिक सोचें, कैसे करना है पत्रकारिता का इस्तेमाल: कुलदीप चंद अग्निहोत्री

आज का मीडिया वह नहीं है, जो महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, सावरकर और आंबेडकर के दौर का था। अब तो मीडिया हाउस बन गए हैं और उनकी रुचि खबरें देने ज्यादा उसमें घालमेल पर है। यह दौर मीडिया के आत्मावलोकन का है। मीडिया की समीक्षा, शिक्षा, शोध जैसे विषयों पर केंद्रित वेबसाइट संवाद सेतु के लोकार्पण के मौके पर केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के कुलपति कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया के दो हिस्से हैं, एक पत्रकार और दूसरा मालिक। किसी भी चैनल या वेबसाइट पर क्या जाना है, इसमें मालिकों का भी बड़ा दखल है, ऐसे में पत्रकारों से ज्यादा मीडिया के मालिकों को आत्मावलोकन करना चाहिए कि आखिर जो सामग्री उनके माध्यम से प्रकाशित हो रही है, वह कितनी सही है।
खूंखार आतंकी रियाज नाइकू के मारे जाने की रिपोर्टिंग पर सवाल खड़े करते हुए उन्होंने कहा कि कई मीडिया संस्थानों की ओर से उसे गणित का टीचर बताने और उसके आतंकी बनने की कहानियां बताई गईं। यह नहीं बताया गया कि वह कितना खूंखार आतंकी था। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्टिंग बताती है कि मीडिया के वर्ग का उद्देश्य यह था कि उसके निगेटिव पक्षों को पब्लिक में न लाया जाए और उसकी मौत से आम लोगों में क्रोध पैदा हो। कुलदीप अग्निहोत्री ने कहा, 'मीडिया का एक वर्ग इस काम में लगा हुआ है कि जब कोई आतंकवादी मरता है तो उसे नायक का दर्जा दिया जाए। इसके निगेटिव पक्षों को पब्लिक में न लाया जाए और उसकी मौत से आम लोगों में क्रोध पैदा हो।' उन्होंने कहा कि ऐसा करने वालों में मुख्य रूप से विदेशी भाषा का मीडिया है। यह मीडिया सैनिकों के लिए तो शहीद नहीं लिखता है बल्कि ऐसे आतंकियों को ग्लोरिफाई किया जाता है। उन्होंने कहा कि मीडिया के दो हिस्से हैं, एक पत्रकार और दूसरा मालिक। इक्का-दुक्का पत्रकार ही ऐसा होगा, जो नाइकू के समर्थ में हो। असल में आत्मावलोकन तो मीडिया के मालिकों को करना होगा कि आखिर वे इस माध्यम का उपयोग किस दिशा में काम करना चाहते हैं।

कोरोना और तबलीग से जुड़ी रिपोर्टिंग पर उठाए सवाल

तबलीगी जमात के आयोजन से बढ़े कोरोना के मामलों की रिपोर्टिंग का भी जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस मीडिया के एक वर्ग ने बेहद चालाकी के साथ मुस्लिमों के खिलाफ कार्रवाई करने से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि यह कहीं से भी मुस्लिमों के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं था, लेकिन विदेशी भाषा ने बेहद चालाकी से ऐसा साबित करने की कोशिश की। आखिर एक संगठन के खिलाफ ऐक्शन किसी समुदाय के साथ कैसे जुड़ सकता है।

मीडिया को बहुजन हिताय की ओर ले जाएगा संवाद सेतु

केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि यह बेहद सटीक समय है, जब मीडिया हाउस के मालिकों को आत्मावलोकन करना चाहिए। संकट की इस घड़ी में जब एक तरफ से कोरोना और दूसरी तरफ से आतंकवाद और नक्सलवाद का हमला हो रहा है, तब रिपोर्टिंग में ध्यान में रखना चाहिए। मीडिया हाउस के मालिक जो नहीं कर पा रहे हैं, उस काम को संवादसेतु को करना चाहिए। इससे भारत की युवा पीढ़ी भारतीय मीडिया के बारे में जान सकेगी। यह एक ऐसा प्रयास है, जो मीडिया को उसके ध्येय वाक्य- बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की ओर ले जा सके। ऑनलाइन माध्यम जूम पर हुए इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संवादसेतु के संपादक आशुतोष भटनागर ने कहा कि हम 24 ऑनलाइन अंक अब तक प्रकाशित कर चुके हैं औऱ जल्दी ही मुद्रित माध्यम में भी संवादसेतु पत्रिका को लाने पर विचार किया जाएगा।

मीडिया के आत्मावलोकन का मंच है संवाद सेतु

संवाद सेतु से जुड़े जयप्रकाश सिंह ने कार्यक्रम की शुरुआत में कहा कि यह मंच मीडिया के आत्मावलोकन है। उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया के बारे में आत्मनियंत्रण की व्यवस्था है। शायद हम उसे भूल गए हैं, इसीलिए मीडिया की कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। ऐसे में संवाद सेतु का यह मंच मीडिया के आत्मावलोकन का स्थान है। मीडिया संस्थानों, मीडिया शिक्षण, कला एवं साहित्य से जुड़े लोग संवाद सेतु के लिए योगदान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में टीम का विस्तार करते हुए देश भर के मीडिया से जुड़े लोगों को साथ लाया जाएगा।

 

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