कालनेमियों के कुचक्र में सबरीमाला

भगवान अयप्पा का सबरीमाला मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी दूर सह्याद्रि पर्वत श्रंखला की पहाड़ियों पर स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान अयप्पा का सम्बंध भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों से जोड़ा जाता है, इसलिए उन्हें हरिहरपुत्र भी कहा जाता है। यह दक्षिण भारत का एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी एवं तपस्वी है। रजस्वला महिलाओं को मंदिर में आने से भगवान अयप्पा का ब्रह्मचर्य नष्ट हो सकता है। इसलिए 10 से 50 वर्ष तक की रजस्वला महिलाओं की मंदिर में प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर में 10 से कम और 50 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाओं को ही प्रवेश की अनुमति है। इस 800 वर्ष पुरानी प्रथा को सुप्रीम कोर्ट ने तोड़ते हुए किसी भी आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सबरीमाला मंदिर में किसी भी आयु की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दी है। धार्मिक आस्थाएं श्रेष्ठ है या परंपराओं को तोड़ने वाला सर्वोच्च न्यायालय का आदेश, आस्थावान और कानूनविदों के बीच यह विमर्श का विषय हो सकता है। लेकिन केरल की साम्यवादी सरकार का इस मुद्दे पर रवैया और साम्यवादी कार्यकर्ताओं के मंदिर प्रवेश के उत्साह ने हिन्दू समाज के कान खड़े कर दिए। केरल के वामपंथी मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किसी भी कीमत पर लागू करेगी। सरकार ने कहा कि सबरीमाला मंदिर धर्मनिरपेक्ष मंदिर है। क्या मंदिर भी धर्मनिरपेक्ष हो सकते हैं?
केरल सरकार ने 12 नवंबर 2018 को केरल उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा में कहा है कि ‘सबरीमाला पर केवल हिन्दुओं का ही अधिकार नहीं है। किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए मुस्लिमों और ईसाइयों के साथ भी विमर्श किया जाना जरूरी है।’ दरअसल यह हिन्दूओं और हिन्दू संस्कृति के खिलाफ पिनरई सरकार का गहरा षड्îंत्र है। राज्य सरकार हिन्दू संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाजों को कुचल देना चाहती है। केरल उच्च न्यायलय ने मंदिर प्रबंधन के कामकाज में सरकार के दखल पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने केरल पुलिस द्वारा श्रद्धालुओं के नाम व पता दर्ज करने पर कहा कि लगता है, सरकार के इरादे कुछ और है। लेकिन एक बात निश्चित है कि आस्था को तर्क के आधार पर तय करने वाले इस फैसले ने बहुसंख्यक समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कई सामाजिक संगठन और मीडियाकर्मी काफी सक्रिय है। हैदराबाद के मोजो टीवी की जर्नलिस्ट कविता जक्कल और रिहाना फातिमा मंदिर में घुसने का प्रयास किया। ये दोनों 250 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर में घुसने का प्रयास किए, परन्तु श्रद्धालुओं के विरोध के कारण वे मंदिर में घुसने में असफल रही। भूमाता ब्रिग्रेड की तृप्ति देसाई अपने पांच महिला साथियों के साथ मंदिर में प्रवेश की जिद कर रही थी। श्रद्धालु प्रदर्शनकारियों ने उन्हें कोच्चि हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने दिया। अंततः तृप्ति देसाई को साथियों सहित एयरपोर्ट से ही वापस जाना पड़ा।
उन्होंने कहा कि वह सबरीमाला मंदिर फिर जल्द ही आएंगी। मंदिर में घुसने का प्रयास करने वाली ये महिलाएं न तो श्रद्धालु है और न ही सामाजिक कार्यकर्ता। मंदिर पहुंचने वाली अधिकांश महिलाओं में नास्तिक, हिन्दुत्व विरोधी, किस ऑफ लव मुहिम की नेता व सेकुलर महिलाएं थी। इसमें कुछ महिलाएं सोशल मीडिया पर भद्दी और अश्लील टिप्पणियां और पोस्ट कर चुकी थी। सबरीमाला की कोई भी श्रद्धालु महिला भक्त इस भीड़ का हिस्सा नहीं थी। ये सेकुलर महिलाएं हिन्दूओं की आस्था से खिलवाड़ कर रही है। मंदिर प्रशासन ने सभी मीडिया संस्थानों को पत्र लिखकर महिला पत्रकारों को रिपोर्टिंग के लिए न भेजने का अनुरोध किया है। इस मामले में मीडिया की अति सक्रियता उसकी पेशेवर भूमिका पर प्रश्न खड़ा करती है।

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