• मुख्य पृष्ठ
  • समाचार
    • अक्षर संवाद
    • दृश्य संवाद
    • समाज संवाद
    • लोक संवाद
  • विचार
    • मनोगत
    • आवरण कथा
    • आलेख
    • आत्मावलोकन
  • दीर्घा
  • विमर्श
  • शोध
  • विविध
    • परिचर्चा
    • साक्षात्कार
    • व्यंग्य
    • साभार
    • समीक्षा
    • प्रसंग
    • व्यक्तित्व
    • परिप्रेक्ष्य
    • वैश्विकी
    • शब्दावली
  • स्वगत
    • दृष्टि
    • लक्ष्य
    • संपर्क
    • टोली
    • सहयोग
Login/Register







समीक्षा

भारतीय यथार्थ का फिल्मी मोहल्ला

भारतीय यथार्थ को सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ उतारने के प्रयास न के बराबर हुए हैं। प्रायः भारतीय सच को फिल्मी पर्दे पर इस तरह परोसा जाता है कि उससे आत्म-परिष्कार की बजाय आत्म-तिरस्कार की भावना पैदा होती है। अभी तक फिल्मी पर्दे पर परोसे गए सच से विद्वेष और पिछड़ेपन की मानसिकता ही पैदा होती रही है।

टिप्पणी :-

संचार को अब तक मीडिया क्षेत्र का समानार्थी मानकर जानने-समझने की कोशिश होती रही है। पहली बार संवादसेतु ने संचार की परिधि में कला क्षेत्र को सम्मिलित कर न केवल संचार को एक व्यापक आधारभूमि उपलब्ध कराई है, बल्कि कला का समसामयिक-सांस्कृतिक बोध से जोडने का कार्य किया है। संवादसेतु अपने समय की एक महत्वपूर्ण बौद्धिक पहल है।

त्रिवेणी प्रसाद तिवारी

संवादसेतु मीडिया के क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक नवागंतुक पत्रकारों को जरूर पढना चाहिए। संवादसेतु मीडिया के अनछुए और गंभीर आयामों से उनका परिचय करने में सक्षम है। यह संचार के एक वृहद परिप्रेक्ष्य से उनका परिचय कराता है और दायित्वबोध के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

चंदन आनंद

Samvad Setu © 2022 All Rights Reserved.