पिछले सात दशकों में आतंकवाद की जो खेप पैदा हुई है उसके लिए वैचारिक स्तर पर भी काफी प्रयास किए गए हैं। जिहाद अलग-अलग स्तरों से होकर, अब बडे पैमाने पर आतंकी फैक्ट्री को …
व्यक्ति अपनी मातृभाषा अथवा परिवेश की भाषा में सबसे सहज व स्वतंत्र महसूस करता है और किसी अन्य भाषा के मुकाबले क्रिएटिव होने की सम्भावना भी सर्वाधिक होती है। संवाद और संचार की दृष्टि से मातृभाषा …
भारतीय यथार्थ को सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ उतारने के प्रयास न के बराबर हुए हैं। प्रायः भारतीय सच को फिल्मी पर्दे पर इस तरह परोसा जाता है कि उससे आत्म-परिष्कार की बजाय आत्म-तिरस्कार की …
आतंकवाद की जड़ें सदियों पुरानी है, लेकिन उसका कलेवर बदलता रहता है। आज भी काम करने का मात्र तरीका बदला है, बाकी गैर-मुस्लिमों को मारने की परंपरा आज भी वही है, जो सैकडों वर्ष से चली …
27 मार्च 2019 भारत के लिए ऐतिहासिक दिन रहा, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित कर बताया कि ‘मिशन शक्ति के तहत भारत के वैज्ञानिकों द्वारा 3 मिनट के भीतर लो अर्थ ऑरबिट में…
सच्चाइयों का संसार अब एक हद तक विज्ञापनों द्वारा रचा जा रहा है। आज के दौर में स्थिति ये बनती जा रही है कि सच वही है जिसे विज्ञापन में जगह मिल जाए। चुनाव की किसी भी...