
सूचना युद्ध के निशाने पर सेना और सत्ता ही नहीं,भारतीय मीडिया भी है
टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) की हो में सनसनीखेज और त्वरित रिपोर्टिंग के लिए भारतीय मीडिया पर भले सवाल उठते रहे हों, मगर ऑपरेशन सिंदूर जैसे अत्यंत संवेदनशील अवसर पर यह अपेक्षाकृत संयमित, संतुलित और जिम्मेदार भूमिका में नजर आया। यह परिवर्तन मीडिया की कार्यप्रणाली में सकारात्मक बदलाव की ओर संकेत करता है। संकट और सुरक्षा से जुड़ी परिस्थितियों में सूचनाओं की सटीकताऔर विश्वसनीयता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है और इस मामले में मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निभाया।
इस व्यावहारिक बदलाव के पीछे भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा समय-समय पर जारी किए गए मीडिया कवरेज से संबंधित दिशानिर्देशों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इन दिशानिर्देशों ने मीडिया संगठनों को यह स्पष्ट कर दिया कि सुरक्षा अभियानों की रिपोर्टिंग करते समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इससे रिपोर्टिंग में अनावश्यक अटकलें, अफवाहें और भावनात्मक उत्तेजना से बचा गया, जिससे दर्शकों तक केवल प्रमाणित और संतुलित जानकारी ही पहुंच सकी।
इसके अतिरिक्त, भारतीय सैन्य अधिकारियों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान समय-समय पर मीडिया को ब्रीफिंग दी, जिससे सूचनाओं की पारदर्शिता बनी रही और पत्रकारों को भी अनुमान या अफवाहों के आधार पर रिपोर्टिंग करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इससे मीडिया को तथ्यपरक जानकारी उपलब्ध हुई और उनका काम न केवल आसान हुआ, बल्कि अधिक भरोसेमंद भी बना। इस समन्वयपूर्ण प्रयास ने न केवल मीडिया की साख को बढ़ाया, बल्कि आम जनता में भी विश्वास कायम किया।
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर के तीन महत्वपूर्ण दिनों के दौरान टेलीविजन दर्शकों ने टेलीविजन पर जो कुल समय बिताया, उसका 16 प्रतिशत हिस्सा केवल समाचार देखने में बिताया। सामान्य समय में इसका योगदान केवल 6 प्रतिशत तक होता था। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल द्वारा जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 3 मई से 9 मई (सप्ताह 18) के बीच 507 मिलियन दर्शकों ने समाचार देखे। यह भारत सरकार द्वारा 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किए जाने के बाद हुआ, जिसमें पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत जम्मू-कश्मीर में आतंकी ढांचे को निशाना बनाया गया। सप्ताह 18 में हिंदी भाषा के समाचारों ने 254 प्वाइंट्स की उच्चतम ग्रॉस रेटिंग पॉइंट हासिल की। इससे समझा जा सकता है कि भारतीय दर्शकों का भरोसा जीतने में भारत के मीडिया चैनल काफी हद तक सफल हुए।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय मीडिया द्वारा प्रस्तुत की जा रही प्रामाणिक, तथ्यपरक और सकारात्मक तस्वीरों ने देशवासियों में गर्व और आत्मविश्वास की भावना को प्रबल किया। सेना के अद्भुत साहस, नेतृत्व की दक्षता और सरकार के समन्वित प्रयासों की झलक जब समाचारपत्रों, टेलीविजन चैनलों और डिजिटल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंची, तो हर भारतीय नागरिक गौरवान्वित एवं रोमांचित महसूस कर रहा था। इस कवरेज ने न केवल देश की एकता को मजबूत किया, बल्कि सेना और सरकार के प्रति जनता का विश्वास भी और गहरा हुआ।
हालांकि यह सकारात्मक परिदृश्य कुछ लोगों को रास नहीं आया। पाकिस्तान से संचालित होने वाले कुछ सोशल मीडिया हैंडल्स और भारत में मौजूद पाकिस्तान-समर्थक विचारधारा के कुछ बुद्धिजीवियों को यह कवरेज असहज करने लगी। उन्हें यह बात खलने लगी कि भारतीय मीडिया जनता के बीच विश्वास अर्जित कर रहा है। देश-दुनिया में भारत की सेना और नेतृत्व की छवि सुदृढ़ हो रही है। इसी कुंठा से ग्रसित होकर इन्होंने एक संगठित प्रयास के तहत भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए गए।
इस अभियान के तहत यह नैरेटिव गढ़ा गया कि मीडिया पक्षपाती है, सरकार के इशारे पर काम कर रहा है और जनता को ‘एकतरफा’ जानकारी दे रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह संदेश फैलाए गए कि हमने भारतीय मीडिया चैनल देखना बंद कर दिया है। यह कथित बायकॉट ट्रेंड करवाया गया, ताकि भ्रम का वातावरण बनाया जा सके और जनता के बीच संदेह उत्पन्न हो। इस तरह के प्रयास स्पष्ट रूप से ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और भारतीय मीडिया की सकारात्मक भूमिका को कमजोर करने की साज़िश थे।
भारत विरोधी मानसिकता रखने वाले तत्वों द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चलाया गया दुष्प्रचार अभियान दरअसल ’हाइब्रिड वॉरफेयर’ का ही एक सुव्यवस्थित और रणनीतिक हिस्सा था। हाइब्रिड वॉरफेयर पारंपरिक युद्ध की सीमाओं से परे जाकर मनोवैज्ञानिक, सूचनात्मक और डिजिटल माध्यमों का प्रयोग कर दुश्मन देश की संस्थाओं, जनमानस और नेतृत्व को कमजोर करने का प्रयास करता है। इस संदर्भ में भारत की एक महत्वपूर्ण संस्था मीडिया को लक्ष्य बनाया गया।
ऑपरेशन सिंदूर के सफल संचालन और भारतीय सेना की निर्णायक कार्रवाई से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी असहजता का सामना करना पड़ा। भारतीय मीडिया ने जब इस अभियान की सकारात्मक और प्रामाणिक कवरेज प्रस्तुत की, तो देश और दुनिया में यह संदेश गया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ न केवल सजग है, बल्कि प्रभावी भी। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए अत्यंत असहज थी, क्योंकि इससे उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद उजागर हो रहा था।
इसी असहजता और भय के चलते पाकिस्तान ने अपने सोशल मीडिया नेटवर्क और भारत में मौजूद सहानुभूति रखने वाले कुछ समूहों की मदद से भारतीय मीडिया की छवि धूमिल करने का प्रयास शुरू किया। एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह प्रचारित किया गया कि मीडिया सरकार की भाषा बोल रहा है, एकतरफा खबरें दिखा रहा है और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके पीछे उद्देश्य यही था कि नागरिकों के मन में ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी सूचनाओं को लेकर भ्रम और संदेह की स्थिति उत्पन्न की जाए।
यह अभियान केवल मीडिया को नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक एकता, सेना की साख और सरकार की रणनीतिक सोच को भी लक्षित कर रहा था। यह हाइब्रिड वॉरफेयर का एक क्लासिक उदाहरण है, जहां दुश्मन हथियारों से नहीं, सूचनाओं के माध्यम से युद्ध लड़ता है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जारी सैन्य संघर्ष अब शांत हो चुका है, लेकिन उस अवधि में भारतीय मीडिया को संदिग्ध और अविश्वसनीय सिद्ध करने का जो सुनियोजित प्रयास हुआ, वह भारत के लिए एक गहरी चेतावनी है। यह घटना स्पष्ट संकेत देती है कि भारत के खिलाफ पारंपरिक युद्ध की जगह अब हाइब्रिड वॉरफेयर, विशेषकर सूचना युद्ध का दौर चल रहा है। यह युद्ध सीमाओं पर नहीं, बल्कि आम जनता के मन और विचारों पर लड़ा जा रहा है, जिसमें मीडिया एक प्रमुख लक्ष्य होता है।
भारतीय सेना भौतिक हमलों को निष्क्रिय करने में पूरी तरह सक्षम है, परंतु सूचनाओं के इस युद्ध से निपटना सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों का कार्य नहीं है। इसके लिए एक व्यापक सामाजिक जागरूकता और सामूहिक उत्तरदायित्व की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मीडिया दर्शकों, पाठकों और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें यह समझना होगा कि हर वायरल हो रही सूचना, पोस्ट या संदेश सच नहीं होता, विशेषकर तब, जब वह राष्ट्रीय संस्थाओं या सुरक्षा अभियानों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता हो। साथ ही, मीडिया संस्थानों को भी चाहिए कि वे पारदर्शिता, तथ्य-जांच और संतुलित रिपोर्टिंग के उच्च मानकों को अपनाकर जनता का विश्वास बनाए रखें। सूचना युद्ध में जीत केवल सच्चाई के साथ खड़े होने से ही संभव है। जब जनता, मीडिया और संस्थाएं एकजुट होकर सच को अपनाती हैं और झूठ को नकारती हैं, तभी देश की आंतरिक सुरक्षा और लोकतंत्र की नींव और अधिक मजबूत होती है।