वैश्विक-विमर्श में सत्य की प्राण-प्रतिष्ठा अभी बाकी है!
अयोध्या में 22 जनवरी को भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद सम्पूर्ण देश आस्था की ऊर्जा से एकसाथ स्पंदित हुआ। भगवान राम को भारतीय राष्ट्रीयता का आधार क्यों कहा जाता जाता रहा है, इसकी अनुभूति नई पीढ़ी ने भी किया। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कभी-कभी ही इतने प्रत्यक्ष रूप में सामने आता है और आस्था का ऐसा उद्रेक सदियों में कभी एक बार देखने को मिलता है।
आस्था की इतनी सकारात्मक अभिव्यक्ति को भी वैश्विक-विमर्श में नकारात्मक समाचार के रूप में परोसने की कोशिश की गई। इसके कारण पूरे भारत में वैश्विक मीडिया को लेकर एक आक्रोश दिखा। अन्य मुद्दों से अपने सीमित जुड़ाव के कारण प्रायः भारत के खिलाफ किया जाने वाले वैश्विक दुष्प्रचार को सामान्य भारतीय महसूस नहीं करता। लेकिन रामलला की प्राणप्रतिष्ठा को जिस तरह से वैश्विक मीडिया ने विवादास्पद बनाने की कोशिश की, उसे आम भारतीयों ने भी समझा और अपने-अपने तरहे प्रत्युत्तर देने की कोशिश भी की।
यदि प्रमुख समाचार एजेसियों, समाचार-पत्रों और समाचार चैनलों के शीर्षकों को विश्लेषण किया जाए तो उनमें आसानी से एक पैटर्न नजर आने लगता है। और सभी शीर्षकों में कुछ शब्दों का उपयोग इस बात की तरफ भी संकेत करती है कि संभवतः राममंदिर का कवरेज में वैश्विक स्तर पर पूर्वनियोजित ढंग से की गई है।
एसोसिएटेड प्रेस ने प्राण-प्रतिष्ठा सम्बंधित समाचार कवरेज के लिए शीर्षक दिया ’ भारत में एक ध्वस्त मस्जिद के ऊपर एक प्रमुख हिंदू देवता के मंदिर का निर्माण किया गया। यहां जानें यह क्यों महत्वपूर्ण है।’ एक अन्य समाचार एजेंसी ने शीर्षक दिया ’भारत में ध्वस्त मंदिर पर हिंदू मंदिर का निर्माण मोदी को उनके राजनीतिक रूख को मजबूती प्रदान करने में सहायता कर रहा है।’
सीएनएन ने अपने शीर्षक में मंदिर विभाजनकारी बताने की कोशिश की है। सीएनएन प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अपने समाचार को शाीर्षक दिया- ’जनता के लिए खोले जाने के बाद भारत के नए विभाजनकारी मंदिर में पांच लाख दर्शनार्थी पहुंचे।’ सीएनएन के एक अन्य समाचार का शीर्षक था ’देशव्यापी चुनावों से पहले विवादास्पद हिंदू मंदिर का उद्घाटन करते हुए मोदी ने एक नए ’दिव्य भारत’ की प्रशंसा की।
रायटर्स की भी राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा की कवरेज विवादास्पद परिप्रेक्ष्य निर्मित करने पर केन्द्रित थी। रायटर्स की एक कवरेज का शीर्षक था- ’भारत का अयोध्या स्थित’ राममंदिर विवादास्पद क्यों रहा है।’ अपने एक अन्य समाचार में रायटर्स विवादास्पद शब्द जोड़ना नहीं भूला है। इस समाचार का शीर्षक इस प्रकार दिया गया था-’ भारत के नए राममंदिर के पीछे विवादास्पद घटनाक्रम क्या रहा है।’
न्यूयॉर्क टाइम्स के शीर्षकों में राममंदिर को कवर करने में एक खास एंगल का दबाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। एक खबर के उसके शीर्षक में राममंदिर को ’हिन्दू राष्ट्रवादियों’ के विजय के रूप में देखा गया है। इस खबर में इस तथ्य को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है कि मंदिर एक ध्वस्त मस्जिद पर बना है और यह भी कि इसके बाद भारत में मुस्लिमों के खिलाफ सामान्य बात हो गई। एक अन्य शीर्षक में राममंदिर के निर्माण को मोदी की एक बड़ी जीत के रूप में परोसा गया है।
वाशिंगटन पोस्ट की खबरों में भी राममंदिर के निर्माण को मस्जिद के विध्वंश और मोदी के राजनीतिक लाभ के उपकरण के रूप में परोसा गया है। अखबार ने अपनी कवरेज का शीर्षक दिया है’ मोदी ने एक ढहाई गई मस्जिद के अवशेषों पर हिन्दू मंदिर का लोकार्पण किया, यह प्रधानमंत्री के लिए एक राजनीतिक जीत है।’ एक अन्य समाचार का शीर्षक है ’मोदी द्वारा एक विवादास्पद हिंदू मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा वर्षो तक चले अभियान की देन है।’
टाइम पत्रिका ने मंदिर को विवादास्पद बताते हुए शीर्षक दिया कि -भारत में राम के विवादास्पद मंदिर का लोकार्पण होने जा रहा है। टाइम ने एक अन्य आलेख को शीर्षक दिया कि’ भारत का अयोध्या मंदिर हिंदू सर्वश्रेष्ठतावाद की विशाल स्मारक है।’
अलजजीरा ने भी अपनी कवरेज में मंदिर के निर्माण को मस्जिद के विध्वंश के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। खबर का शीर्षक इस प्रकार गढ़ा गया-भारत के मोदी ने अयोध्या में ढहाई गई मस्जिद के स्थान पर मंदिर का लोकार्पण किया। अलजजीरा ने एक अन्य कवरेज को शीर्षक दिया कि भारत का अयोध्या स्थित राम मंदिर विवादास्पद क्यों है।
इसी तरह बीबीसी ने भी मंदिर को संघर्षो का कारण बताने की कोशिश की है। एक खबर का शीर्षक है -अयोध्या राम मंदिर: भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ढहाई गई बाबरी मस्जिद के स्थान पर हिंदू मंदिर का उद्घाटन करेंगे। एक अन्य आलेख में बीबीसी ने अयोध्या के राम मंदिर को धार्मिक-विखंडन का कारण बताने की कोशिश की गई है।
ध्यान से विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि शीर्षकों में विवादास्पद, ध्वस्त मस्जिद, राजनीतिक लाभ, हिंदू सर्वाेच्चता का उपयोग बार-बार किया गया है। और मंदिर के निर्माण को मुस्लिमों और पंथनिरपेक्षता के विरुद्ध साबित करने की कोशिश की गई है। अल-अक्सा मस्जिद के संदर्भ में आस्था के स्थलों के आग्रह की कवरेज यही वैश्विक मीडिया जिस तरह से करता है, यह उसके ठीक उलट है।
इस सभी मीडिया प्रतिष्ठानों की कवरेज यह बताती है कि मंदिर के निर्माण और उसमें भगवान रामलला की प्राणप्रतिष्ठा को एक पूर्वनिर्धारित और पूर्वाग्रही परिप्रेक्ष्य के साथ कवर किया गया है। मसलन,अधिकांश शीर्षकों में यह बताने की कोशिश की गई है कि मंदिर 16 वीं शताब्दी की मस्जिद को विध्वंश करके बनाया गया है लेकिन यह कहीं भी बताने की कोशिश नहीं की गई है कि इस मस्जिद का निर्माण एक भव्य मंदिर को नष्ट करके किया गया था, जो कि वहां हजारों सालों पहले से बना हुआ था।
वैश्विक मीडिया ने इतिहास का इतना सुविधाजनक उपयोग संभवतः ही आस्था से सम्बंधित अन्य किसी मामले में पहले कभी किया हो। हर मामले में क्रोनोलॉजी और टाइमलाइन बताने वाली वैश्विक मीडिया यहां 16 वीं शताब्दी के पूर्व की स्थिति की बिलकुल चर्चा नहीं कर रहा है, तो इसे पूर्वाग्रह नहीं तो और क्या कहा जाएगा।
इसी तरह लोकतंत्र, न्यायप्रणाली और वैज्ञानिकता की दुहाई देने वाला वैश्विक मीडिया इस मामले में न्यायालय और उसके निर्णयों को कैसे भूल गया, यह हैरतंगेज है। न्यायालयी दृष्टि से देखें तो यह आस्था को लेकर दुनिया में सबसे लम्बे समय तक चलने वाला प्रकरण है और एएसआई द्वारा वैज्ञानिक ढंग से ढांचे को लेकर निकाले गए निष्कर्ष न्यायालय के निर्णय के आधार बने है, इसे वैश्विक मीडिया पूरी तरह से कैसे भूल सकता है?
मीडिया की किसी भी कवरेज का एक अन्य आधार सभी सम्बद्ध पक्षों के ’वर्जन’ कोे स्थान देना है। मंदिर निर्माण और भगवान रामलला की प्रतिष्ठा सम्बंधी खबरों में मंदिर से सम्बद्ध पक्षों को कहीं स्थान नहीं दिया गया है। यह मीडिया कवरेज के मूलभूत सिद्धांटों की भी अवहेलना है।
राम मंदिर निर्माण का आंदोलन जब प्रारम्भ हुआ था तब कमोबेश भारतीय सहित वैश्विक मीडिया ने इससे जुड़ी तीव्र आस्था और सांस्कृतिक पहचान को दरकिनार कर इसका ’अन्यीकरण (अदराइजेशन)’ करने की कोशिश की थी। मीडिया में होने वाली बहस तर्काे के बजाय कुछ नारों पर केन्द्रित कर दी गई। अब रामलला की प्रतिष्ठा होते-होते भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से ने सच को स्वीकार कर लिया है, वैश्विक मीडिया में सत्य का प्रतिष्ठित होना अभी बाकी है। भगवान रामलला की प्रतिष्ठा के बाद वैश्विक मीडिया के पूर्वाग्रह जिस तरह तरह से सतह पर आए हैं, संभवतः वहीं से उसके प्रतिकार की पृष्ठभूमि भी बनेगी।