ओटीटी शब्द ओवर-द-टॉप का शॉर्ट फॉर्म है। ओटीटी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां फिल्म और टेलीविजन कंटेंट को केबल या सैटेलाइट प्रसारणकर्ता के बजाय इंटरनेट पर प्रसारित किया जाता है। इंटरनेट की सहायता से मिलने वाली इस सेवा से केबल बॉक्स से छुटकारा मिला और अपने हाथ में एक स्मार्ट फोन पर टीवी के तमाम कार्यक्रम देख पाना संभव हो गया। भारत में प्रमुख ओटीटी प्लेटफॉर्म हॉटस्टार, अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स, वूट, जी5, सोनी लाइव हैं। हाल के कुछ ही वर्षों में भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर टीवी के साथ ही वेब सीरीज, हास्य कार्यक्रम और फिल्मों की स्ट्रीमिंग काफी लोकप्रिय है।
भारत में ओटीटी सेवा का विस्तार तेजी के साथ हो रहा है। ऐप डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफॉर्म मो-मैजिक द्वारा देश भर में किए गए एक सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार इंटरनेट की पहुंच और तेज गति देश में वीडियो कंटेंट देखने के तरीके को तेजी से बदल रही है। देश में 55 फीसदी लोग टीवी शो, फिल्में, खेल और दूसरे कंटेंट ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे हॉटस्टार, अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स पर देख रहे हैं। 41 फीसदी लोग कंटेंट देखने के लिए डीटीएच प्लेटफॉर्म जैसे टाटा स्काई, डिश टीवी का इस्तेमाल करते हैं। इस सर्वे के मुताबिक भारत में अभी भी हॉट स्टार सबसे ज्यादा देखा जा रहा है।
एक अन्य रिपोर्ट का आकलन है कि भारत में ओटीटी सेवा का बाजार 2023 तक 3.60 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक यह बाजार 35 हजार करोड़ रुपए का था। इंटरनेट की बढ़ती स्पीड और स्मार्टफोन यूजर बढ़ने की वजह से भारत में ओटीटी मार्केट 15 फीसदी की तेज रफ्तार से बढ़ रहा है। 2025 तक इसका वैश्विक मार्केट 17 फीसदी की रफ्तार से बढ़कर 240 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा।
दरअसल, कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन की वजह से सिनेमा हॉल बंद हैं। इस बीच कई प्रोडक्शन हाउस ओटीटी प्लेटफार्म पर ही अपनी फिल्म रिलीज कर रहे हैं। हाल ही में विद्या बालन स्टारर महत्वाकांक्षी बायोपिक फिल्म शकुंतला देवी, दिल बेचारा या गुलाबो सिताबो जैसी मुख्यधारा की कई फिल्मों को इस मंच से ग्लोबल रिलीज मिल चुकी है। हालांकि इस व्यवस्था में कमाई को लेकर बॉक्स ऑफिस जैसा गणित नहीं है। एक रिपोर्ट की मानें तो अगर कोई फिल्म इन दिनों ओटीटी पर डायरेक्ट रिलीज होती है, तो ओटीटी राइट्स से ही लगभग 80 फीसदी राजस्व मिलता है और सैटेलाइट राइट्स से मुनाफे का 20 फीसदी हिस्सा निकलता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर फिल्मों की कमाई का गणित सीधा होता है। रिलीज या स्ट्रीमिंग के लिए ओटीटी को फिल्मों के अधिकार खरीदने होते हैं। अधिकारों के लिए निर्माता को एक रकम मिलती है। यह डील एक ही फिल्म के अलग-अलग भाषाओं के वर्जन के लिए अलग-अलग होती है यानी हर वर्जन के राइट्स की डील अलग से होती है। दूसरी तरफ, कुछ फिल्मों का निर्माण ओटीटी प्लेटफॉर्म करवाते हैं। यानी खास तौर पर किसी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म कोई डील करता है। जैसे एचबीओ एक ओटीटी प्लेटफॉर्म है, जो खास तौर पर फिल्में अपने प्लेटफॉर्म के लिए बनवाने के बिजनेस में है। इस डील में होता यह है कि प्लेटफॉर्म एक तयशुदा रकम फिल्म निर्माताओं को देता है और निर्माता उससे कम रकम में फिल्म बनाते हैं। इसमें बची हुई रकम उनका लाभ होता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कमाई के मुख्यतः तीन तरीके प्रचलित हैं। ओटीटी का हर यूजर किसी भी कंटेंट को जब डाउनलोड करता है, तो उसके लिए एक शुल्क अदा करता है। दूसरा तरीका है सब्सिक्रिप्शन। कोई भी यूजर हर महीने या एक समय सीमा के लिए एक रकम चुकाता है और उस प्लेटफॉर्म का तमाम कंटेंट देख सकता है। तीसरा तरीका है कंटेंट देखने का कोई चार्ज नहीं है, लेकिन कंटेंट के बीच बीच में यूजर को विज्ञापन देखने होते हैं। जैसे यूट्यूब फ्री है, लेकिन वीडियो के बीच में ऐड देखने होंगे। इन विज्ञापनों के जरिये ओटीटी की कमाई होती है। कुल मिलाकर ओटीटी पर बिजनेस का मॉडल बहुत साधारण है। पहले प्लेटफॉर्म अपने कंटेंट को बनाने या खरीदने में पैसा खर्च करता है और उसके बाद दर्शकों या यूजरों से एक चार्ज लेकर वो कंटेंट बेचा जाता है।
पिछले समय के अनुभवों को सामने रखें तो ओटीटी प्लेटफॉर्म सिनेमाघरों के विकल्प के तौर पर उभरा है। हालांकि इसके अपने फायदे और नुकसान हैं। मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल के शब्दों में सिनेमा जो लार्जर दैन लाइफ अनुभव देता है वो टीवी या छोटी स्क्रीन पर पूरी तरह नहीं मिलता। सिनेमाघर में फिल्म देखना एक सामाजिक उत्सव और सामूहिक अनुभव होता है। फिल्में कई माध्यमों से देखी जा सकती हैं, सबकी अपनी अहमियत है।
हालांकि ओटीटी प्लेटफॉर्म का अब तक का छोटा सा सफर ही कई बार विवादों में आ चुका है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि अब तक इस पर नियंत्रण को लेकर कोई भी नियामक संस्था नहीं बनाई जा सकी है। इस तरह की निगरानी के अभाव में कंटेट निर्माता बार-बार गरिमापूर्ण अभिव्यक्ति की लक्षमण रेखा लांघते रहे हैं। कुछ समय पूर्व अश्लील वेब सीरीज के जरिये हिंदू देवी-देवताओं और भारतीय सेना के अपमान को लेकर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर एकता कपूर की गिरफ्तारी को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में सुनवाई चली थी। इस दौरान कोर्ट ने सूचना एवं प्रसारण विभाग को पक्षकार बनाने का आदेश देते हुए केंद्र शासन से पूछा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म के जरिये दिखाई जाने वाले वेब सीरीज को लेकर क्या प्रावधान है? इसे नियंत्रित कौन करता है? जिस तरह से फिल्मों को नियंत्रित करने के लिए सेंसर बोर्ड है, वैसी कोई व्यवस्था वेब सीरीज को लेकर है क्या? शिकायतकर्ता वाल्मीकि सकरगाए ने पांच जून को इंदौर के अन्नपूर्णा थाने में एकता कपूर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी कंपनी ऑल्ट बालाजी सोशल मीडिया पर ट्रिपल एक्स वेब सीरीज चलाती है। वेब सीरीज में हिंदू देवी-देवताओं और भारतीय सेना का अपमान किया गया है। वेब सीरीज के जरिये अश्लीलता परोसी जा रही है। एपिसोड में दिखाया गया था कि पुरुष पात्र भारतीय सेना की वर्दी पहना होता है। एक महिला पात्र उसकी वर्दी फाड़ती है। इस अपमान से आहत होकर शिकायत दर्ज कराई थी।
ओटीटी प्लेटफॉर्म इसलिए भी चर्चा में रहा है क्योंकि इसके जरिए गाली-गलौज, कामुकता और हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके बावजूद दर्शक इन्हें देखने का लोभ नहीं छोड़ पाते, जिसकी वजह से क्राइम सीरीज जमकर लोकप्रिय होती हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कई ऐसी नकारात्मक वेब सीरीज उपलब्ध हैं, जिन्होंने दर्शकों के बीच खूब लोकप्रियता हासिल की, लेकिन इसके साथ-साथ समाज को गलत दिशा में बढ़ाने का काम भी किया है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार की आर्या, अमेजन प्राइम की ब्रीद: इनटू दि शैडोज, पाताललोक, मिर्जापुर और नेटफ्लिक्स की सेक्रेड गेम्स ऐसी ही कुछ वेब सीरीज हैं।
इस समय ओटीटी प्लेटफॉर्म आईटी मंत्रालय के तहत आता है। मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी है कि भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्म पर दिखाए जाने वाले कंटेंट को अपने दायरे में लाना चाहता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे ने कहा, कि ओटीटी एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो अभी अपनी प्रकृति के हिसाब से आईटी मंत्रालय के तहत आता है। इस प्लेटफार्म पर वेब सीरीज, सीरियल जैसे कंटेंट दिखाए जाते हैं, इसलिए इसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आना चाहिए। भारत में अभी तक ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए कोई नियामक नहीं है। प्रिंट, रेडियो, टीवी, फिल्म और ओटीटी इन पांच अलग मीडिया में से चार के लिए नियामक है, जबकि एक अभी खुले रूप से कारोबार कर रहा है। इस समय अगर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई फिल्म रिलीज होती है तो वह सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के तहत नहीं आती है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म बाजारमें लगातार अपनी स्थिति को मजबूत करता जा रहा है। भविष्य में इसके विकास की संभावनाएं और भी प्रबल हैं। ऐसे में इस प्लेटफॉर्म को बिना किसी निगरानी के खुला नहीं छोड़ा जा सकता। लिहाजा यदि एक उचित नियामक संस्था की निगरानी में इस सेवा को विस्तार मिले तो सूचना तंत्र की पहुंच, गति एवं सुविधा को बढ़ावा देने में यह प्लेटफॉर्म मददगार साबित हो सकता है।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
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