नए ’काल और पात्र’ के माध्यम से स्वतंत्रता की कहानी कहता है ’स्वराज’

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को अभी तक प्लासी के युद्ध के बाद से कहने-सुनने का प्रचलन रहा है। स्वतंत्रता के नायकों का चुनाव भी इसी कालखण्ड से किया जाता है। इस कालखण्ड में भी कुछ चुनिंदा नायकों के इर्द-गिर्द स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बुनी जाती रही है। दूरदर्शन पर 14 अगस्त 2022 से प्रसारित होने जा रहे धारावाहिक स्वराज टाइमस्केल और नायक, दोनों पैमानों पर स्वतंत्रता की प्रचलित कहानी की चुनौती देती है। इसमें जहां वास्कोडिगामा के भारत आने के बाद से भारतीय स्वतंत्रता की कहानी कही गई है, वहीं उन गुमनाम नायकों के योगदान और संघर्ष को रेखाकित करने की कोशिश की गई है, जिनकी भूमिका का आकलन सही ढंग से नहीं किया गया।
स्वराज अमृत-महोत्सव के दौरान दृश्य-श्रव्य माध्यम के जरिए इतिहास से रू-ब-रू होने परियोजना है। 75 एपिसोड के यह डाक्यू-ड्रामा सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में दूरदर्शन के क्षेत्रीय चैनलों के माध्यम से प्रसारित किया जाएगा। इसका प्रसारण आल इण्डिया रेडियो पर भी होगा। स्पष्ट है कि दूरदर्शन की पूरी अधोसंरचना का उपयोग स्वराज के प्रसारण के लिए किया जाएगा। प्रसिद्ध अभिनेता मनोज जोशी ने स्वराज में सूत्रधार की भूमिका निभाई है।
इससे पहले भारतःएक खोज, चाणक्य, मैं दिल्ली हूं जैसे अनेक धारावाहिकों के जरिए भारतीय इतिहास को खोजने और आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गई है। इसमें डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी का चाणक्य ही ऐसा धारावाहिक माना जाता है, जिसने आम भारतीय की इतिहास की समझ को बेहतर ही नहीं बनाया बल्कि उनमें भारतीयता का गौरवबोध भी भरा। भारतः एक खोज और मैं दिल्ली हूं, जैसे धारावाहिक औपनिवेशिक मान्यताओं और काल-विभाजन का दृश्य-श्रव्य रूपांतरण ही कहा जा सकता है। 
डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी का उपन्यास उपनिषद् गंगा दृश्य-श्रव्य माध्यमों की दुनिया में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा सकता है, लेकिन इसका कथ्य मूलतः दार्शनिक है। इसलिए इसे ऐतिहासिक धारावाहिक नहीं माना जा सकता। व्यक्ति केन्द्रित अनेक ऐतिहासिक धारावाहिकों का निर्माण और प्रसारण हुआ है, लेकिन इनमें शोध की कमी स्पष्ट दिखलाई पड़ती है और व्यक्तित्व की श्रेष्ठता का परोसने का लोभ अधिकांश धारावाहिकों की प्रामाणिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर जाता है। 
इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्वराज संकल्पना और प्रस्तुतिकरण के स्तर पर अब तक के डाक्यू-ड्रामा में बिल्कुल विशिष्ट दिखाई पड़ता है। इस धारावाहिक के केन्द्र में व्यक्ति नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की व्यापक परिघटना है। इस बड़ी परिघटना को निरंतर आगे बढ़ाने में जिन व्यक्तियों ने अपना योगदान दिया है, उनका श्रृखलाबद्ध प्रस्तुतीकरण यह धारावाहिक है। इसमें स्वतंत्रता संग्राम को व्यक्तिगत उद्यम नहीं बल्कि एक सतत परम्परा के रूप में दिखाया गया है।
स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय इतिहास को दिल्ली केन्द्रित मानने की संकल्पना को भी स्वराज में चुनौती दी गई है। स्वतंत्रता संग्राम के पूर्वाेत्तर भारत और दक्षिण भारत के स्वर्णिम पृष्ठ भारतीय इतिहास से सिरे से गायब है। दृश्य-श्रव्य माध्यमों में उपस्थिति का प्रश्न ही नहीं उठता। अब जब दक्षिण भारतीय सिनेमा अपने नायकों की कहानियां भव्य तरीके से सामने लेकर आ रहा है, तो अधिकांश लोगों में ऐस नायकों के बारे में कौतुहल बढ़ रहा है।
दूरदर्शन को ऐसा आभास है कि स्वराज उसके ब्रांड को पुनः स्थापित करने के लिए लाभदायक हो सकता है। इसीलिए, उसने इसके साथ ही कुछ नए सीरियल और लोगो भी लांच किया। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में दूरदर्शन इतिहास और संस्कृति को सृजनातमक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए नए सिरे से तैयारी कर रहा है।  
इस धारावाहिक का पूरा नाम ’स्वराज- भारत के स्वतंत्रता संग्राम की समग्र गाथा’ है। नाम से ही यह स्पष्ट है कि इसके जरिए  स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को यह समग्रता से कहने की कोशिश की गई है। गुमनाम नायक इस धारवाहिक के सबसे बड़े आकर्षण है। ऐसे में दर्शकों की इस बात पर भी दृष्टि रहेगी के किन गुमनाम नायकों का चयन किया गया है और उनका चयन क्यों किया गया है ? इस धारावाहिक के पीछे मौलिक संकल्पनाओं और तथ्यपूर्ण गवेषणाओं को आग्रह रखने वाली एक टीम ने काम किया है। इसलिए इसमें तथ्य सृजनात्मक और संदेशपूर्ण ढंग दृश्यों में परिवर्तित हुए होंगे, इतना तय है। 
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दृश्य-श्रव्य माध्यम से समग्र गाथा बहुत पहले ही कही जानी चाहिए थी। किन्हीं कारणों से यह कहानी नए दौर के माध्यमों के जरिए नहीं कही जा सकी। अमृत महोत्सव के दौरान स्वराज का निर्माण और प्रसारण इस आवश्यक कमी को पूरा करता है। स्वराज देश के सच्चे नायकों को श्रद्धांजलि है और इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है क्योंकि सच्चे नायकों का स्मरण भविष्य में सच्चे नायकों की निर्मिति की मूलभूत शर्त भी होती है।
 

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