कठुआ के कठघरे मीडिया और मानवाधिकार

चार लोगों के विरोध प्रदर्शन को पूरे देश का मुद्दा बनाने की भारतीय मीडिया की कला दुनिया के हैरतअंगेज कारनामों में से एक है। प्रायः ऐसे विरोध प्रदर्शनों का चुनाव सम्प्रदाय और जाति के आधार पर और मानवाधिकार का बहाना बनाकर किया जाता है। ऐसा हैरतअंगेज कारनामा करने वाले मीडिया के वर्ग की दाल अब पहले जैसी गल नहीं रही। फिर इस गिरोह की तरफ से प्रयास तो जारी ही हैं। दाल न गलने के बहुत से कारण हैं, जिसमें सबसे पहला तो यह है कि सच को अभिव्यक्त करने के लिए अब कई ऐसे प्लेटफार्म हैं, जहां जनता अपना नजरिया रख सकती है और दूसरा बौद्धिकतावाद के शिकार ये लोग सारा एजेंडा ही उस भाषा में सेट करते हैं, जो समाज की है ही नहीं। इसलिए विदेशी मीडिया, संयुक्त राष्ट्र इनके एजेंडे का समर्थन करने वाले कुछ देश तो इनकी बात समझ लेते हैं, लेकिन जिस मोहल्ले की घटना का उदाहरण देकर यह अपना मतप्रचार करते हैं, उस मोहल्ले के लोग ही उसे समझ नहीं पाते।

जम्मू के कठुआ-प्रकरण में जिस तरह झूठ परोसा गया और अब सच का जो स्वरूप सामने आ रहा है, वह मीडिया और मानवाधिकारवादियों की सच्चाई को समझने का आइना बन सकता है। बच्ची का नाम और संप्रदाय सामने आते ही इस पूरे गिरोह को अपना एजेंडा सेट करने और मतप्रचार करने के लिए जैसा मनचाह मुद्दा मिल गया था। दिल्ली से बॉलीवुड तक और विदेशों में बैठे इस गिरोह के लोगों ने इस पूरी घटना को एकदम से एक नया एंगल दे दिया और मीडिया को साथ लेकर पूरे विश्व में चीख-चीख कर बताया गया कि भारत में एक मंदिर में आठ साल की मुस्लिम बच्ची से कई दिनों तक हिंदुओं द्वारा बलात्कार किया गया और अंत में उसे मार दिया गया। बॉलीवुड में तो यह तक प्रचार कर दिया कि देवीस्थान में बच्ची से बलात्कार। मैं हिन्दुस्तान हूं और मैं शर्मिंदा हूं। देखते ही देखते जो आंदोलन स्थानीय लोग महीनों से कर रहे थे उसे एकदम से तीन माह बाद देश के अन्य हिस्सों से मानवाधिकार और न्याय के देवताओं ने आकर हाईजैक कर लिया और जम्मू से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक यह गिरोह प्रचार-प्रसार में लग गया। इस बार भी देश में फैल रही असहिष्णुता से लड़ने के लिए मानवाधिकार और न्याय के देवताओं को उतारा गया। जिनमें बच्ची को न्याय दिलाने के लिए वकील के तौर पर उतरी जम्मू की ही दीपिका सिंह रजावत और साथ ही उनके कुछ साथी जिनमें अधिवक्ता तालिब हुसैन और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व अध्यक्ष शेहला राशिद ने पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए अपनी सक्रियता दिखाई।

बाद में इस पूरे घटनाक्रम और बलात्कार की बातों पर भी बहुत से प्रश्न चिन्ह उठने लगे, जिससे यह गिरोह एक बार फिर भाग खड़ा हुआ। इनमें सबसे पहले हम बात करेंगे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की क्रांतिकारी नेता शेहला रशीद की, जिसने इस बच्ची के परिवार को आर्थिक सहायता देने का काम अपने कंधों पर लिया था। शेहला का कहना था कि वह पीड़ित परिवार को केस लड़ने के लिए और अन्य आवश्यकताओं के लिए देश-विदेश से पैसे जुटांएगी। अंततः वह अपनी जेएनयू वाली जुबान पर खरी उतरी, उन्होंने देश-विदेश से उस बच्ची का नाम ले लेकर बहुत सारा धन इकट्ठा किया। धन इकट्ठा करके उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पूरे देश को खुद बताया कि उन्होंने बच्ची के परिवार के लिए 40 लाख रुपए जुटा लिए हैं।

यह 40 लाख भी उन्होंने खुद बताए हैं, असल रकम कितनी होगी अल्लाह जाने। आज 10 महीने से ज्यादा हो गए, उस परिवार को इन क्रांतिकारियों से एक कौड़ी तक नसीब नही हुई। आसिफा के परिवार को केस लड़ने के लिए रोज पठानकोट जाने के लिए अंततः अपने मवेशी बेचने पड़े। और शेहला रशीद से जब ट्विटर पर देशवासियों द्वारा पैसे का हिसाब पूछा गया तो उन्होंने अपना ट्विटर अकाउंट ही डिलीट कर दिया।

इस कड़ी में दूसरा नाम आता है अधिवक्ता तालिब हुसैन का, जो आसिफा के खिलाफ हुए अन्याय के लिए बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाना चाहते थे। देश की मीडिया ने बाकी मानवाधिकार और न्याय के देवताओं की तरह इन्हे भी हीरो के रूप में प्रस्तुत किया। कुछ महीनों बाद दो महिलाओं ने तालिब हुसैन के खिलाफ ही बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई, जो केस उन पर चल रहा है। साथ ही घरेलू हिंसा और दहेज के लिए अपनी पत्नी को जान के मारने के प्रयास के मामले में भी वह अभियुक्त हैं।

इसी कड़ी में अंत में नाम आता है अधिवक्ता दीपिका रजावत का। जिनके इर्द-गिर्द यह पूरा खेल चला। मीडिया ने दीपिका रजावत को आसिफा के लिए न्याय का चेहरा बना के देश-विदेश में पेश किया। दीपिका राजावत इस पूरे घटनाक्रम में हीरो बनकर उतरी और आसिफा का नाम लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में तो क्या कनाडा और संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गई। इसी महीने जिस दीपिका को न्याय की देवी बनाकर देश-विदेश में मीडिया द्वारा पेश किया गया। उसी को केस से बाहर निकालने की मांग स्वयं आसिफा के पिता ने कोर्ट में की और अंततः दीपिका रजावत को आसिफा के घर वालों ने केस लड़ने से मना कर उसे बाहर निकाल दिया। इसका कारण भी आसिफा के पिता ने बताया। उनके अनुसार इस केस में अब तक 110 सुनवाईयां हो चुकी हैं और दीपिका रजावत उनमें से केवल दो सुनवाईयों में ही आईं हैं।

आसिफा के परिवार द्वारा केस से बाहर निकाले जाने के बाद जब दीपिका से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, मैंने इस केस के लिए इन लोगों से कोई पैसे चार्ज नहीं किए। मेरे और भी क्लाईंट्स हैं, जिनके मैं केस लड़ रही हूं जिनसे मैंने पैसे लिए हैं, जिनकी वजह से मेरी डिग्नीफाईड लाईफ ऐश्योर्ड रहती है, मैं उनके लिए प्रतिबद्ध हूं, इसलिए आसिफा का केस लड़ने के लिए मेरे पास समय नहीं है कि मैं रोज पठानकोट जाऊं। मुझे लगता नहीं कि दीपिका रजावत के शब्दों की समीक्षा या उस पर टिप्पणी करने की हमें कोई आवश्यकता है। उन्होंने अपना चरित्र और सोच खुद ही बता दी है। अब जिस आसिफा के केस को लड़ने के लिए उनके पास समय नहीं है क्योंकि वह जिनसे पैसे लिए हैं उनके प्रति प्रतिबद्ध हैं उस आसिफा के नाम पर किस तरह उन्होंने पिछले 6-7 महीनों में पूरे देश और विदेश का भ्रमण किया और मानवता और न्याय पर बड़े.बड़े मंचों पर भाषण दे कई पुरस्कार बटोरे इस पर जरा नजर डाल लें।

1-24 अप्रैल 2018, ऑफ द कफ विद दीपिका सिंह रजावतः टॉक शो विद शेखर गुप्ता मुम्बई।

यह कार्यक्रम शेखर गुप्ता और बरखा दत्त द्वारा चलाए गए डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म द प्रिंट द्वारा मुम्बई में आयोजित किया गया। आसिफा के लिए पठानकोट न पहुंच पाने वाली दीपिका आसिफा के नाम पर उस शो के लिए मुम्बई पहुंच गई और शेखर गुप्ता के साथ मानवता और न्याय पर लंबी चर्चा की।

2-9 मई 2018 हिन्दुस्तान पटना डायलॉग, पटना टॉक

यह कार्यक्रम हिन्दुस्तान मीडिया चैनल द्वारा बिहार से चलाया गया और दीपिका मानवता पर बौद्धिक देने उस कार्यक्रम के लिए जम्मू से बिहार गई। इस कार्यक्रम के दौरान बार-बार एक लाईन स्क्रीन पर चलाई जा रही थी, मददगार मन ने बना दिया वकील

3-12 जून 2018

आसिफा के नाम पर दीपिका को मुम्बई में आईएमसी लेडीज विंग वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

4-17 जून 2018

मुम्बई में वुमन ऑफ द ईयर से सम्मानित हाने के बाद दीपिका 5 दिन बाद केरल में वुमन ऑफ द सेंचुरी अवार्ड इन सेल्यूट सक्सेस 2018’ लेने पहुंची।

5-23 जून 2018

कनाडा के सरे ब्रिटिश कोलंबिया में ह्युमैनिटेरियन अवार्ड 2018 से नवाजा गया और मानवता पर चर्चा भी की गई।

6-12-13 जुलाई 2018

दो दिवसीय मनोरमा न्यूज कन्क्लेव, कोची में दीपिका मानवता और न्याय पर अपनी बात रखने और चर्चा करने के लिए उपस्थित रहीं।

7-10 अगस्त

इस दिन असहिष्णुता के विरोध में चल रहे कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के प्रदर्शन में दीपिका ने दिल्ली में खूब नारे लगाए।

8-11 अगस्त 2018

इसके अगले दिन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, कैंपेन के कार्यक्रम में दीपिका कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर के साथ मुख्य अतिथि के रूप में रहीं और वहां मौजूद जनता को देश में फैल रही असहिष्णुता से अवगत कराया।

9-25 अगस्त 2018

आसिफा को असल न्याय दिलाने के लिए पठानकोट जाने का समय नहीं था। लेकिन दिल्ली के संसद मार्ग में विरोध कर रहे अपने गिरोह जो इस बार किसी अन्य बैनर और नाम तले संघर्ष कर रहा था, को संबोधित करने दोबारा दिल्ली पहुंची।

10-4 सितम्बर 2018

दिल्ली के संसद मार्ग में वृंदा करात के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति के अच्छे दिनों के लिए हो रहे में प्रदर्शन में संघर्ष करने पहुंची।

11-18-22 सितम्बर 2018

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार सत्र के लिए जेनेवा पहुंची और मानवता और न्याय पर अपने शब्द रखे।

12-15 अक्तूबर 2018

बलात्कार के आरोप में फंसे अपने मानवतावादी और न्यायवादी मित्र तालिब हुसैन का केस लड़ने पहुंची।

13-21 अक्तूबर 2018

अब मानवता न्याय और मानवाधिकार की बात आए और मदर टेरेसा का नाम ना आए ऐसा संभव हो नहीं सकता। इस दिन हॉर्मनी फाऊंडेशन द्वारा मदर टेरेसा मेमोरियल अवार्ड फॉर सोशल जस्टिस 2018, द्वारा दीपिका को उनकी बहादुरी और सेवा के लिए नवाजा गया।

14-27-29 अक्तूबर 2018

वोग क्रूसेडर ऑफ द ईयर अवार्ड के लिए दीपिका फिर मुम्बई गई और अपने साहस का परिचय देते हुए लोगों को मानवता के गुर सिखाए।

इन सबके अलावा और बहुत सी छोटी-मोटी जगहों पर दीपिका रजावत ने आसिफा का नाम ले लेकर और भाषण देकर खूब नाम और धन कमाया। जम्मू बार ऐसोसिएशन ने जहां दीपिका और उनके गिरोह के एजेंडे को पहले से भांपते हुए उनसे किनारा कियाए वहीं पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर की बार ऐसोसिएशन ने दीपिका को इस बहादुरी के लिए उनको अपने बार की मानद सदस्यता प्रदान की। जिसकी चिट्ठी उसके सचिव मियां सुलतान महमूद ने खुद हस्ताक्षर कर के उन्हें भेजी। जो दीपिका मीडिया के कैमरों के सामने आसिफा को न्याय दिलाने के लिए आंदोलित रही और उस बच्ची की मौत पर दुनिया भर में घूम कर भाषण देतीं रही और अवार्ड इकट्ठे करती रही। वह उस बच्ची को जहां असल न्याय मिलना है उस कोर्ट में केवल 110 में 2 सुनवाईयों में उपस्थित हुई। आसिफा को कोर्ट में न्याय दिलाने के लिए जहां उनके पास समय का अभाव है और रोज पठानकोट जाना संभव नहीं है। वही दीपिका रजावत आसिफा के नाम पर अवार्ड लेने और मानवता और न्याय पर भाषण देने जेनेवा, कनाडा और देश भर में घूम आई। जस्टिस कैंपेन की नायिका कैंपेनिंग पर ही ध्यान देती रही क्योंकि जस्टिस तो कभी एजेंडा था ही नहीं। पीड़िता के परिवार को बीच में छोड़कर वह अपना अभियान चलाती रही।

आसिफा के नाम पर अवार्डस और भाषणों का यह सिलसिला अभी और लम्बा चल सकता था, लेकिन न्याय की आस में बैठे आसिफा के पिता ने स्वयं ही दीपिका राजावत को बाहर निकाल दिया। आसिफा के लिए दीपिका की लगन और महनत मीडिया के अलावा न ही आसिफा के परिवार को दिखाई दी और न ही देश को। वहीं दूसरी ओर बच्ची को न्याय दिलाने के लिए रोज सुनवाई मे आने वाले अधिवक्ता केण्के पूरी मुबीन फारुकी, पंकज तीवारी, विशाल शर्मा, पंकज कालिया, जोगिंद्र सिंह गिल, करणजीत सिंह, सौरभ ओहरी, वरुण चिब और हरविंदर सिंह का नाम कहीं मीडिया में नहीं आया क्योंकि न तो वह उस गिरोह का हिस्सा हैं और न ही किसी बच्ची की मौत पर देश-विदेश में अपना एजेंडा चलाते। जानकारी के लिए यह सभी अधिवक्ता हर रोज 30 से 250 किमी. तक की यात्रा करके रोज पठानकोट आते हैं आसिफा के लिए और मीडिया द्वारा स्थापित न्याय और मानवता की देवी देश के अन्य राज्यों, कनाडा और संयुक्त राष्ट्र तो जा सकती हैं पर जम्मू से डेढ घंटे की यात्रा वाला पठानकोट बहुत दूर है।

अब जब आसिफा के परिवार द्वारा दीपिका को केस से बाहर का रास्ता दिखाया गया तो उन्होंने बौखलाहट में ट्विटर पर लोगों द्वारा सवाल पूछे जाने पर आसिफा के परिवार को ही कटघड़े में खड़ा कर दिया और जो भी उनके विरोध में लिख रहा है, उसे अवमानना के केस से धमकाने में लगी हुई हैं। इस घटनाक्रम को देखकर हाल ही में एयर इंडिया की फ्लाईट में शराब के लिए एक आईरिश महिला द्वारा स्टाफ को धमकाने और गाली-गलोच करने की घटना याद आ गई। उन मोहतरमा का भी यही कहना था कि वह अंर्तराष्ट्रीय मानवाधिकार अधिवक्ता है और लोगों के मानवाधिकारों के लिए लड़ती हैं। तुम तुच्छ लोग मुझे शराब देने से मना कैसे कर रहे हो, अब यह तो भगवान ही जाने यह सब मानवाधिकार और न्याय के देवता कौन से मानवों के लिए लड़ रहे हैं और साधारण मानव के प्रश्न पूछे जाने पर या आइना दिखने पर क्रोधित हो धमकाने की मुद्रा में क्यों आ जाते हैं। भारतीय मीडिया और विदेशी मीडिया द्वारा नैतिकता की शिखर पर स्थापित की जाने वाली अधिवक्ता दीपिका रजावत को भी ठीक उसी तरह हीरो बना कर पेश किया गया जिसकी चर्चा हमनें प्रारंभ में ही की थी। लेकिन बात अंततः वहीं खत्म हुई जहां से हमने शुरुआत की थी कि समाज को सबसे अच्छे से समझने का दावा करने वाला यह पूरा वर्ग और मीडिया समाज से पूरी तरह कटा हुआ है। यह एक बार फिर साबित हो गया कि इनकी मुहीम और मतप्रचार के एजेंडे ऐसे ही पिटते रहेंगें क्योंकि यह पब्लिक है यह सब जानती है।

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