आतंकवाद की जड़ें सदियों पुरानी है, लेकिन उसका कलेवर बदलता रहता है। आज भी काम करने का मात्र तरीका बदला है, बाकी गैर-मुस्लिमों को मारने की परंपरा आज भी वही है, जो सैकडों वर्ष से चली आ रही है। मीडिया को आज के युग का सबसे बड़ा हथियार माना जाता है। इस बात को आतंकवादी संगठन भी भलीभांति जानते हैं। आतंकवादी संगठन मीडिया का भरपूर उपयोग कर आतंकी मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं।
मीडिया क्षेत्र में पब्लिक रिलेशन्ज अहम भूमिका निभाता है। पीआर का काम लक्षित व सौद्देश्यपूर्ण संबंध बनाना है, किसी व्यक्ति, वस्तु या संस्थान को प्रोमोट करना, लोगों को उसके बारे में अवगत करवाना है। पीआर किन्ही संगठनों और प्रमुख लोगों की छवि बनाने में महत्वपूर्ण कारक है।
आजकल यही काम जिहाद के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले भी दक्षता के साथ कर रहे हैं। अपनी बातों से लोगों को प्रभावित करना, आकर्षित करना पीआर की अनूठी कला है। इसी कला का प्रयोग अब आतंकवादियों द्वारा भी किया जा रहा है, पब्लिक रिलेशन्ज के माध्यम से आतंकवाद फैलाने के लिए इन लोगों ने पहले से ही अपनी टारगेटेड ऑडियंस तय करके रखी होती है। ये आतंकवादी संगठन अपना काम खुलेआम नहीं कर सकते। इनका कार्य तो लुका-छुपी करके ही पूर्ण होता है। खुफिया एजेंसियों के रडार पर आने का खतरा भी इनके सिर पर हमेशा मंडराया होता है। इनके पीआर की सबसे बड़ी कार्यनीति यह है कि ये लोग अपना कार्य मजहब की आड़ में छिपकर करते हैं। इसके द्वारा लोग इनके साथ एक जुड़ाव महसूस करते हैं और फिर लोगों को गलत राह पर धकेल देते हैं। ये लोगों का माइंडवॉश करने का काम करते हैं। आजकल के दौर में यही लोग मीडिया का सहारा लेकर लोगों के मन में जहर घोल रहे हैं।
आतंकी समूह पब्लिक रिलेशन्ज को मजबूत बनाने के लिए कुछ खास तरीके, कुछ खास पद्धतियां अपनाते हैं, जिससे आम आदमी के मन में डर पैदा किया जा सके। जैसे कुछ भयावह चित्र दिखाना, कटे सिर, खून से सने चाकू-खंजर और छोटी-छोटी घटनाओं को इस तरीके से पेश करना कि लोगों में इनका खौफ बना रहे। ये सब इनकी मूल रणनीतियां हैं। ये आतंकवादी संगठन पीआर के माध्यम से लोगों में डर पैदा करते हैं और इनकी विचारधारा का अनुसरण करने वाले लोग इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। ये पीआर के लिए गलत तरीकांे का प्रयोग करते हैं जो सामान्य पब्लिक रिलेशन्ज एथिक्स के खिलाफ है।
खुुफिया एजेंसियों के रडार पर आने से बचने के लिए ये पब्लिक रिलेशन्ज के प्लेटफॉर्म भी बदलते रहते हैं। आजकल इंटरनेट के जमाने में कोई भी व्यक्ति अपना संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक कुछ सेकेंड में पहुंचा सकता है। कमोबेश आतंकवादी संगठन भी इसी का इस्तेमाल जिहाद के लिए कर रहे हैं, ताकि इनकी चर्चा सार्वजनिक हो। फेक अकाउंट बनाकर अपना काम करना, जैसे दाबिक और रूमियाह जैसी पीडीएफ वर्जन में पत्रिका निकालना ताकि लोगों में भी इनका खौफ बना रहे। फील्ड में आकर लोगों को प्रभावित करना इनकी शुरूआती रणनीति रही है। पहले संगठन स्थापित हो जाए, फिर ये लोग अपना कार्य धीरे-धीरे पूरा करते हैं।
आतंकवाद सभी देशों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। आतंकवादी संगठन, मीडिया विशेष रूप से इंटरनेट व विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर जिहाद फैलाने का काम कर रहे हैं। जिहादी पब्लिक रिलेशन्ज इस्लामिक प्रतीकों व शब्दों का उपयोग कर प्रोपेगेंडा फैलाने का काम करते हैं। यह काम एक रणनीति के तहत किया जाता है।
किसी भी चीज के बारे में जानने के लिए उस चीज के बारे में पढ़ना काफी आवश्यक है। हम अपनी राय तभी रख पाते हैं, जब हम उसके बारे में जानते हों। जिहादी पब्लिक रिलेशन्ज और इन आतंकवादी संगठनों की मानसिकता समझने के लिए दाबिक और रूमियाह के चार अंक ही काफी हैं। दाबिक और रूमियाह जैसी पत्रिकाओं द्वारा ही हम इनकी मानसिकता समझ सकते हैं। इनको वैचारिक रूप से नेस्तनाबूद किया जा सकता है।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
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