महामारी का आयरन कर्टेन

एक सूचना छिपाने की कीमत कितनी बड़ी हो सकती है, इसका अंदाजा कोराना संकट से लगाया जा सकता है। साथ ही, सही समय पर सम्पूर्ण सूचना मिलनी क्यों जरूरी है, इसके बार में भी कोराना संकट ही हमें सचेत करता है। कोरोना ने दुनिया को एक अभूतपूर्व संकट में खडा़ कर दिया है, तो इसका एक बड़ा कारण सूचना के मोर्चे पर बरती गई लापरवाही है। कोरोना चीन में कैसा फैला, इसके बारे में संशय का लाभ चीन को दिया जा सकता है। लेकिन कोरोना दुनिया में कैसे फैला, इसके बारे में चीन की भूमिका को लेकर कोई संदेह नही है। चीन में यह चमगादड़ से मानव में आया वुहान की चर्चित हुआनान सीफूड बाजार से या फिर वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलाॅजी की लैब से, इसके बारे में स्पष्ट रूप से अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन लगभग सभी देश इस पर एकमत है कि कोविड-19 एक वैश्विक महामारी इसलिए बन गई क्योंकि चीन ने दुनिया को इसके बारे में सही-समय पर सूचित करने में आपराधिक लापरवाही बतरती। यदि इस वायरस और इसकी प्रकृति के बारे में दुनिया को शुरुआती दौर पर सचेत कर दिया गया होता तो सार्स की तरह कोविड-19 का प्रभाव भी एक सीमित दायरे में रह जाता।
सार्स के संक्रमण के दौरान इससे सम्बंधित सभी सूचनाएं वैश्विक स्तर पर पहुंच गई थी, और इसी कारण इसका प्रभावी रोकथाम संभव हो सका। कोरोना-19 के मामले में स्थिति एकदम उलट दिखती है। चीन में दिसंबर महीने के दूसरे सप्ताह से ही कोरोना के मामले सामने आना शुरु हो गए थे लेकिन चीन ने इसका आकलन बहुत कामचलाऊ तरीके से किया। संभवतः उसे आर्थिक-नुकसान या अपनी छवि की चिंता सता रही थी। दिसम्बर के अंतिम सप्ताह तक चीन में यह संकेत मिलने शुरू हो गए थे कि कोविड-19 का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हो सकता है। इसके बावजूद उसने इस सूचना को छिपाया। स्थिति तब और खराब हो गई, जब तमाम आशंकाओं के बीच चीन की साम्यवादी सरकार ने वुहान से अपने नागरिकों को दुनिया भर की यात्रा करने में कोई रोक नहीं लगायी। वुहान से दुनिया भर में जाने वाले लोग जैव-आत्मघाती दस्ते में तब्दील हो गए और जल्द ही कोविड-19 के संक्रमण ने वैश्विक-महामारी का रूप ले लिया।
चीन ने वस्तुस्थिति को छिपाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी सहयोग लिया। चीन की तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोविड-19 की सूचना देने में बहुत विलम्ब किया गया और शुरूआती रिपोर्ट में चीन ने इस बात की जानकारी नहीं दी कि इसका संक्रमण एक इंसान से दूसरे इंसान में हो सकता है। इसीलिए 14 जनवरी को इस संगठन ने ट्वीट कर दुनिया भर को यह जानकारी दी कि चीन की शुरुआती जांच में इस बात के संकेत नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस इंसानों से इंसानों में फैलता है। लेकिन जब सभी देशों में कोरोना फैलने की खबरें आने लगीं तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक सप्ताह बाद ही 22 जनवरी को एक ट्वीट में यह जानकारी दी कि वुहान में कोरोना वायरस के इंसानों से इंसानों में फैलने के मामले सामने आए हैं। और फिर एक सप्ताह बाद इसी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया।
चीन और विश्व-स्वास्थ्य संगठन के गठजोड़ द्वारा सूचना छिपाने के आरोपों को इसलिए भी बल मिला क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ताईवान द्वारा दी गई सूचना पर कोइ ध्यान नहीं दिया था। ताईवान के आईलैंड्स सेंटर्स फाॅर डिजीज कंट्रोल के मुखिया चांउ जीहा ने प्रेस कान्फ्रेंस कर बताया कि ताइवान ने 31 दिसंबर को ही डब्ल्यूएचओ को इस नए वायरस इंसान से इंसान में फैलने के बारे में सचेत किया था। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस महत्वपूर्ण सूचना पर कोई सटीक प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी चीन और विश्व-स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर सवाल उठाया। मंत्रालय के अनुसार कोविड-19 को रोकने के लिए जब राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन से आने वाले यात्रियों पर रोक लगाने का फैसला लिया था तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे गलत फैसला करार दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका इसके बाद किस तरह आमने-सामने आए, यह अलग कहानी है।
चीन का आंतरिक घटनाक्रम भी इसी बात की तरफ संकेत करता है कि चीन ने कोविड-19 से सम्बंधित सूचनाओं को छिपाने के लिए जानबूझकर प्रयास किए। चीन के वुहान केन्द्रीय अस्पताल में कार्यरत नेत्र-विशेषज्ञ डॉ. ली वेनलियांग ने 30 दिसंबर को ही अपने साथी डाॅक्टरों को सूचित किया था कि उन्होंने कुछ मरीजों में सार्स जैसे लक्षण दिखे हैं। चीन की साम्यवादी सरकार ने इस सूचना को गम्भीरता से लेने के बजाय डॉ. वेनलियांग को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का रास्ता चुना। चार दिन बाद चीनी प्रशासन के पब्लिक सिक्यूरिटी ब्यूरो ने उन्हें आॅफिस बुलाया और उन्हें एक पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। उस पत्र में उन गलत टिप्पणी करने और सामाजिक व्यवस्था को बुरी तरह से अस्तव्यस्त करने के आरोप लगाए गए थे। वह उन आठ लोगों में से एक थे, जिन पर अफवाह फैलाने के आरोप लगाकर जांच की गई। सही सूचना देने, खतरे के बारे में बताने के लिए डाॅ. वेनलियांग से जिस तरह से व्यवहार किया गया, वह साबित करता है कि चीन ने कोविड-19 सम्बंधी सूचनाओ को लेकर किस तरह का अपारदर्शी रुख अपनाया हुआ था।
चीन का सूचनाओं से खेलने का दृष्टिकोण तब भी दुनिया के सामने आया जब उसने वुहान में कोविड-19 से मरने वाले व्यक्तियों की संख्या में यकायक परिवर्तन कर दिया। 17 अप्रैल को चीन ने वुहान में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या में 1,290 की बढ़ोतरी कर दी, इसके कारण मौतों का आंकड़ा कुल 3,869 हो गया। आंकडों में इस परिवर्तन ने दुनिया भर का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इससे यह घारणा भी मजबूत हुई कि चीन सही आंकड़ों और सूचनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस प्रकरण को लेकर चीन पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि ’’ इस अज्ञात शत्रु से होने वाली मौतों का आंकड़ा चीन अचानक बढ़ा कर दोगुना कर दिया है। लेकिन ये इससे कहीं अधिक है। ये अमरीका में हो रही मौतों के आंकड़े से भी कहीं अधिक है।’’
चीन द्वारा कोविड-19 के सम्बंध में सूचना दबाने का एक अन्य प्रकरण को ’ सिक्स डे डिले’ के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार चायनीज प्रशासन ने कोविड-19 के खतरे के बारे में सभी औपचपारिक सूचनाएं 14 जनवरी को दे दी थीं लेकिन चीनी राष्ट्रपति ने इसे 20 जनवरी को सार्वजनिक किया। तब तक इसके कारण 3000 हजार से अधिक लोग सक्रमित हो गए थे।
कोरोना संक्रमण के समय चीन में उत्तरदायित्वपूर्ण शासन और पारदर्शी सूचना प्रणाली का घोर अभाव दिखा है। इस समय एक एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के बजाय चीन का व्यवहार टिपिकल साम्यवादी देश की तरह है। प्रायः प्रत्येक साम्यवादी देश में वैचारिकी के नाम पर उत्तरदायित्व और पारदर्शिता की बलि चढ़ा दी जाती है। शासक तानाशाह बन जाते हैं और सूचनाएं आयरन कर्टेन में कैद हो जाती है। आयरन कर्टेन सूचना-प्रवाह को अपने हितों के अनुसार नियंत्रित और बाधित करने वाली साम्यवादी देशों की नीति रही है। इस आयरन कर्टेन के कारण कोविड-19 की सूचनाएं दुनिया तक सही समय पर नहीं पहुंची और महामारी ने पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में ले लिया। आगे ऐसा न हो इसलिए साम्यवादी आयरन कर्टेन का वैश्विक मंच से गायब होना आवश्यक है।

 

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