मिलेनियल्स

सामान्य प्रचलन में एक मान्यता है कि हर तीस वर्ष के अंतराल पर एक नई पीढ़ी आकार लेती है। मिलेनियल्स शब्द भी एक निश्चित अवधि के दौरान जन्म लेने वाली पीढ़ी को रिपरजेंट करता है। यह शब्द 1987 से प्रचलन में है। मिलेनियल्स को इन्फोर्मेशन एज नेट जेनरेशन इको बूमर्ज जेनरेशन नेक्सट आदि कई दूसरे नामों से भी जाना जाता है। यूएस के सेंसस ब्यूरो यानी जनगणना के आंकड़ों की मानें तो इस वक्त दुनिया की एक चौथाई आबादी मिलेनियल्स की है। आसान भाषा में आप इसे युवा आबादी कह सकते हैं। 1980 या 82 से साल से लेकर 2000 के बीच जो लोग पैदा हुए हैं यानी 21वीं सदी की शुरूआत में वयस्क हुए हैं, उन्हें मिलेनियल्स कहा जाता है। भारत में आमतौर से जिन्हें आजकल के बच्चे या आजकल के जवान कह दिया जाता है। कुछ समय पहले यह शब्द काफी सुर्खियों में था और सोशल मीडिया पर भी इसके पक्ष और विरोध में एक लंबी बहस हुई थी। यह शब्द तब एकाएक काफी लोकप्रिय हो गया था जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऑटोमोबाइल सेक्टर में आई जबरदस्त मंदी को लेकर बयान दिया कि मिलेनियल्स की सोच बदली है और वो ओला और उबर जैसी प्राइवेट टैक्सी के इस्तेमाल पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।

मोटे तौर पर मिलेनियल्स की अवधारणा सात मुख्य बिंदुओं को स्पर्श करती है। ये सात बिंदु हैं- संस्कृति, प्रेरणा, नवाचार, डिजिटल तकनीकी, सहभागिता, ज्ञानार्जन और नेतृत्व। मिलेनियल्स के प्रतिनिधि ये युवा संचार के युग में डिजिटल और वास्तविक जीवन में ज्यादा कुशल और तेज हैं। सामाजिक व सामुदायिक शैली के जीवन वाले ये युवा वैयक्तिक स्वतंत्रता को तरजीह देते हैं। ये युवा ज्यादा संतुलन और बेहतर स्वास्थ्य वाली जीवन शैली चाहते हैं। अपने और समाज के लिए और बेहतर व अनुकूल प्रॉडक्टस की डिमांड करते हैं। संपर्क एवं सुविधा के लिए इन युवाओं में ज्यादा ललक है। कुल मिलाकर ये युवा अपनी पिछली पीढ़ियों की तुलना में तकनीक विज्ञान और समझ को लेकर बेहतर और तेजतर हैं इसलिए इन्हें जेन एक्स या जेन वाय जैसे शब्द भी मिल चुके हैं। लेकिन इन आधुनिक खूबियों के बावजूद इसकी आलसी जल्दबाज और कम या न विचार करने वाली यानी दूर की न सोचने वाली पीढ़ी कहकर आलोचना भी होती रही है।

भारत में इस शब्द पर अब तक ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है, इसलिए बहुतों के लिए यह एक नई टर्म हो सकती है। दुनिया के कई हिस्सों में खासकर पश्चिम में मिलेनियल्स वाली अवधारणा पर काफी अध्ययन हो चुका है। इसलिए वहां की मिलेनियल्स आबादी को लेकर ज्यादा सुनने-पढ़ने को मिलता है। विकसित देशों में इस जेनरेशन में यह प्रवृत्ति देखी गई है कि ये परिवारों सामाजिक संस्कारों और जीवन के पुराने मूल्यों की कद्र नहीं करते। यह प्रवृत्ति भारत में भी धीरे-धीरे उभरने लगी है। इसके बावजूद भारतीय मिलेनियल्स के बारे में यह राय नहीं बनाई जा सकती। भारत की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस श्रेणी में आता है। तकनीकी का अधिकतम उपयोग भले ही इसे पसंद होए लेकिन सामाजिक मूल्यों से अभी भी यह गहरे तक जुड़ा हुआ है। दुनिया की तुलना में भारत की यह आबादी आलसी या गफलत की शिकार नहीं कही जा सकती। यहां माता-पिता अभिभावकों या बड़े-बुजुर्गों को लेकर मिलेनियल्स में एक चिंता और समझ के साथ उन्हें साथ लेकर चलने की सोच कायम है। इन्हें जिम्मेदारी का बखूबी एहसास है और मूल्यों की फिक्र है। इन मूल्यों के साथ ही तकनीक विज्ञान और कौशल के गुणों से भरपूर यह पीढ़ी ज्यादा ईमानदार और बेहतर व्यवस्था की पक्षधर दिखती है।

रेजिना लटरेल और कैरेन मैकग्रा लिखित दि मिलेनियल माइंडसेटस् ऐसी ही एक किताब है, जिसमें न सिर्फ इस पीढ़ी के कई लोगों, बल्कि पुरानी पीढ़ियों के कुछ लोगों से बातचीत कर दो जेनरेशन के बीच में एक आपसी समझ बनाने की दिशा में कोशिश की गई है। मिलेनियल शब्द को और गहराई से समझने के लिए इसी तरह का एक प्रयास भारत में भी हुआ है। सुब्रह्मण्यम एस कलापति ने दि मिलेनियल्स-एक्सप्लोरिंग दि वर्ल्ड ऑफ दि लारजेस्ट लिविंग जेनरेशनस् में इस दिशा में बहुत बढ़िया काम किया है।

मिलेनियल जेनरेशन ने हमारे जीवन, कामकाज के तौर-तरीकों और मूल्यों को प्रभावशाली ढंग से प्रभावित किया है। मिलेनियल्स शब्द सिर्फ एक पीढ़ी का नहीं, बल्कि एक पूरी सोच में परिवर्तन को इंगित करता है। भारतीय युवा अगर सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों से जुड़ा रहकर तकनीकी विकास को अपनाएं तो इस वर्ग में देश को आगे ले जाने की अपार संभावनाएं हैं।

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