डिजिटल होती दुनिया में कीबोर्ड करेज एक ऐसी टर्म है, जिसने कम्प्यूटर एवं इंटरनेट उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित किया है। इसके बावजूद सीमित प्रचलन के कारण बहुत से लोग इससे अब तक अनजान ही हैं। कम्यूटर एवं इंटरनेट का उपयोग करने वालों के लिए एक कहावत आमतौर पर उपयोग की जाती है। ’वह हर व्यक्ति ज्यादा हिम्मतवाला होता है, जब वह कीबोर्ड के पीछे छिपकर खुद को अभिव्यक्त कर रहा होता है।’ शब्द कीबोर्ड करेज इसी कहावत को विस्तार से परिभाषित करता है।
कम्यूटर स्क्रीन और कीबोर्ड के माध्यम से बहादुरी दिखाना, जो कि असल जीवन में उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का गुण होता ही नहीं है, कीबोर्ड करेज कहलाता है। इस दौरान वह व्यक्ति इंटरनेट के विभिन्न सोशल मंचों पर लिखते वक्त साहसपूर्ण होने का झूठा दंभ भरता है, जबकि असल जीवन में वह व्यक्ति वैसा बिलकुल भी नहीं होता है।
अपने जीवन के एक उदाहरण को लेकर इसे सरल ढंग समझाने का प्रयास करते हैं। कुछ समय पहले हमने रामायण के रावण को आदर्श रूप में स्थापित करने वाले एक एजेंडे को उद्घाटित करने के लिए श्रृंखला के तहत अपने फेसबुक अकांउट से पोस्ट करना शुरू किया। मेरे एक फेसबुक मित्र को वह नागवारा गुजरा और उन्होंने उस पोस्ट पर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां करनी शुरू कर दीं। जब हद ही हो गई, तो असल जीवन के रिश्ते की परवाह करते हुए हमने वो पोस्ट डिलीट कर दी। उसके कुछ समय बाद उन्हीं मित्र से मिलना हुआ। मन में वही पुरानी बात खटक रही थी तो उनसे पूछ ही लिया। उस पर उनकी शाब्दिक एवं देहभाषा के रूप में मिली प्रतिक्रिया बेहद हैरान करने वाली थी। उस बात पर वह जवाब देने से बच रहे थे और इस तरह दर्शा रहे थे कि मानों सोशल मीडिया पर उस पोस्ट को लेकर दोनों के बीच कुछ हुआ ही नहीं हो। उन्हें मेरे किसी सवाल का जवाब देने का साहस न हुआ। तब मेरे समक्ष उस मित्र के दो चेहरे थे। पहला वो जो सोशल मीडिया पर मैंने देखा था और दूसरा प्रत्यक्षतः मेरे समक्ष मौजूद था। इन दोनों चेहरों के बीच का फर्क कीबोर्ड करेज ही निर्धारित करता है।
आज सूचनाओं के क्षेत्र में फेक न्यूज एक सामान्य सी अवधारणा बन चुकी है। सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा के मीडिया तक दोनों ही इसके शिकार नजर आते हैं। कहना गलत न होगा कि कीबोर्ड करेज ने भी फर्जी खबरों को तैयार करने और उन्हें तेज गति के साथ प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दरअसल किसी भी व्यक्ति के लिए यह मुश्किल होता है कि वह दूसरे व्यक्ति के सामने जाकर कोई झूठ बोल दे। इसके उलट एक कीबोर्ड और कम्प्यूटर स्क्रीन की मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के बीच झूठ फैलाना कहीं सरल काम है। झूठ को फैलाने का मकसद पूरा होने या फिर झूठ पकड़े जाने पर किसी तरह की कार्रवाई से बचने के लिए अकसर उसे इंटरनेट से हटा भी दिया जाता है। मगर अपनी अप्रत्याशित गति के कारण वह झूठ तब तक बहुत सा नुकसान पहुंचा चुका होता है।
फेक न्यूज फैलाने के अलावा कीबोर्ड करेज का सबसे ज्यादा नुकसान सोशल मीडिया का उपयोग करने वालों को हुआ है। तर्क-वितर्क का यह ऑनलाइन मंच सबको अपनी बात रखने का समान अवसर देता है। संवाद को सार्थक बनाने वाली यही खासियत बहुत से मामलों में मुश्किलें भी पैदा कर देती है। इसका सबसे बड़ा कारण है असहमतियां। असहमतियां होना गलत नहीं है। असहमतियों में ही तो संवाद की खूबसूरती छिपी होती है। लेकिन जब हम अपनी असहमतियों की तरह दूसरों की असहमतियों का सम्मान करना भूल जाते हैं, तो टकराव की स्थिति पैदा होती है। ऊपर से कीबोर्ड करेज वैसे भी मनोवैज्ञानिक साहस तो प्रदान कर ही रहा होता है। यहीं से शुरू होता है ट्रोलिंग, निजी हमलों, घटिया एवं गैर जिम्मेदार टिप्पणियों और लानत-मलानत का सिलसिला। वैसे तो साहसी होना एक सकारात्मक गुण है, लेकिन वर्णित कमियों के कारण कीबोर्ड करेज एक अवगुण माना जाता रहा है।
हालांकि हर व्यक्ति, वस्तु या विचार का नकरात्मक के साथ-साथ कोई न कोई सकारात्मक गुण भी होता है। कीबोर्ड करेज का भी एक महत्वपूर्ण गुण है। समाज में बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें खुद को अभिव्यक्त करने का मौका नहीं मिल पाता। इसके कई कारण हो सकते हैं। कुछ लोगों के जीवन में कुछ न कुछ ऐसा घटा होता है, जो उनके कहने का साहस छीन लेता है। वे लोग उस दबाव तले इस कदर दब जाते हैं कि फिर अपनी बात बोलकर सबके सामने रखने में खुद को असमर्थ सा महसूस करते हैं। कुछ लोग ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जो घर में सबसे छोटे होते हैं। उन्हें अकसर अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल पाता। कीबोर्ड करेज इन गुमनाम आवाजों को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम बना है। इस साहस के कारण यह वर्ग संवाद की प्रक्रिया में शामिल हो सका है।
कीबोर्ड करेज और एल्कोहोल में एक बड़ी खास समानता है। दोनों ही चीजें व्यक्ति को कृत्रिम साहस प्रदान करती हैं और दोनों के ही उपभोग में एक सीमा आती है जब ये विनाशकारी बन जाते हैं। कीबोर्ड करेज संवाद के क्षेत्र में उपयोगी साबित हो सकता है यदि इसका इस्तेमाल निजी हमलों या आपसी टकराव के बजाय सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में किया जाए। बेहतर हो कि यदि किसी विषय पर लोगों के दिलो-दिमाग में असहमतियां हैं, तो सम्मानपूर्वक ढंग से सुलझाने की खुद में हिम्मत पैदा करें। तभी वह उपयोगी है, फिर चाहे वह साहस कोई सा भी हो।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
Comments
Please Login to Submit Your Comment