5 अगस्त 2019 भारत के लिए ऐतिहासिक दिन रहा, तो पाकिस्तान का मानो कुछ औचित्य ही न रहा। जम्मू-कश्मीर व लद्दाख, दो केन्द्र शासित प्रदेश बनने के साथ, पाकिस्तान ने मानवाधिकार उल्लंघन, अल्पसंख्यक अत्याचार, सेकुलरिज्म इत्यादि का राग, रात-दिन अलापना शुरू कर दिया। इस घटनाक्रम को पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग से लेकर विभिन्न इस्लामिक व अन्य देशों के समक्ष रखने की पुरजोर कोशिश की, मगर यहां पाकिस्तान की तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया।
पाकिस्तान को यदि कुछ राहत मिली तो वह विदेशी मीडिया से, भले ही वह प्रोपगेंड़ा आधारित खबरों और भ्रामक विज्ञापन के द्वारा ही सही। हालांकि यह हैरानी वाली बात नहीं है, क्योंकि विदेशी मीडिया अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, भारत की नकारात्मक छवि बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है।
इसका ताजा उदाहरण दि न्यूयार्क टाइम्स अखबार में 27 सितम्बर को पूरे पेज पर प्रकाशित कश्मीर आधारित एक विज्ञापन है। अप्रत्यक्ष रूप से पाक समर्थित यह विज्ञापन तथ्यात्मक रूप से पूर्णतः गलत और भ्रामक है, जिसके सहारे पाकिस्तान ने पूरे विश्व में कश्मीर का रोना रोया।
यह विज्ञापन इस बात की तस्दीक करता है कि पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से कश्मीर मुद्दे को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, इस बार भी मुंह की खानी पड़ी है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं, और इस्लामिक संगठन व देश, इस मुद्दे पर पाकिस्तान के पक्षकार नहीं रहे। अपने बुरे दौर से गुजर रहा पाकिस्तान, जहां अराजकता, अंदरूनी कलह, बेरोजगारी, कर्जदारी, कमजोर अर्थव्यवस्था, के चलते कोई ठोस कदम उठाने की क्षमता न होने के कारण पाक को अब, भ्रामक विज्ञापनों व खबरों का ही सहारा है। जिसके जरिए पाकिस्तान खुद को और दुनिया को यह दिखाने की कोशिश में लगा है कि वह लड़ रहा है।
प्रत्यक्ष रूप से यह विज्ञापन इन्टरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन फाउन्डेशन द्वारा प्रायोजित था। जो मुख्य रूप से केन्या, इंडोनेशिया और थाईलैंड में काम करती है। यह वही फाउन्डेशन है, जो पहले भी भारत के खिलाफ मुहिम चला चुकी है।
हाउडी मोदी कार्यक्रम के समय 22 सितंबर को अनुच्छेद 370 व 35ए हटाने के विरोध में, हॉस्टन के एनआरजी स्टेडियम में, भारत विरोधी विज्ञापन व अभियान के मुख्य आयोजक के रूप में, यह संस्था सामने आई थी। विज्ञापन के माध्यम से कश्मीर रैली के नाम पर ‘गो बैक मोदी’ स्लोगन का खूब प्रचार-प्रसार किया गया। इस तरह के विज्ञापन दर्शाते हैं कि पाकिस्तान जो हर बात पर परमाणु बम की धमकी देता रहता था, आज इस कदर स्वयं को सांत्वना दे रहा है कि वह अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत से, विज्ञापनों के जरिए लड़ाई लड़ रहा है।
चूंकि जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत हमेशा से स्पष्ट रहा है कि यह हमारा आंतरिक मामला है, और किसी भी देश को इस पर हस्तक्षेप करने का न तो किसी प्रकार का कोई अधिकार है और न ही आवश्यकता। इसीलिए पाकिस्तान प्रत्यक्ष रूप से भारत पर किसी तरह का दबाव बना पाने में असफल रहा है, मजबूरन पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री इमरान खान ने विदेशी मीडिया की तरफ रुख अपनाकर भारत के खिलाफ माहौल बनाने का हरसंभव प्रयास किया है। दि न्यूयॉर्क टाइम्स में 30 अगस्त को इमरान खान का प्रकाशित लेख इसी बात का एक उदाहरण मात्र है। जिसमें जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, व स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए, भारत से शांतिपूर्ण तरीके से वार्तालाप की कोशिश, जैसी खोखली बातों का जिक्र किया गया है।
विदेशी मीडिया ने अपने एजेंड़े के तहत भारत की नकारात्मक छवि बनाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर, पूरे विश्व को भ्रमित करने की भरपूर कोशिश की है। दि गार्डियन बताता है कि जम्मू-कश्मीर पर फैसला संविधान के तहत नहीं बल्कि इरादे और विचारधारा के द्वारा दिया गया एक बयान है। वहीं दि न्यूयॉर्क टाइम्स इसे कश्मीर की स्वायत्तता मिटाना बताता है। अलजजीरा इस फैसले के दिन को काला दिन मानता है। यही रूख बीबीसी ने भी अपनाया। यह वही विदेशी मीडिया है जो, पाक समर्थित आतंकवाद से ग्रसित भारत, बलोचिस्तान पर हो रहे अत्याचार, उईघर मुस्लिमों के चीनीकरण पर चुप्पी साध के बैठा रहता है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब विदेशी मीडिया ने भारत के प्रति पूर्वाग्रह और पक्षपाती रूख न अपनाया हो। भारत के विरूद्ध इस तरह के कुकृत्य, विदेशी मीडिया की कुंठा को साफतौर पर दर्शाता है।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
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