राष्ट्रीय संवाद का प्रतीक ‘श्रीराम ध्वज’

प्रतीक एवं चिन्ह अनंत काल से संवाद के बेहद महत्वपूर्ण माध्यम रहे हैं। लिखित या मौखिक संदेश बहुत बार इतने उपयोगी साबित नहीं होते, जितनी तीव्रता और परिपूर्णता से प्रतीक संवाद करते हैं। लिखित या मौखिक संदेश को भेजने और फिर उसे समझने में कईं प्रकार के अवरोधक होते हैं। भेजने वाला जिस मानसिकता और पृष्ठभूमि से उसे संपादित करता है, जरूरी नहीं प्राप्तकर्ता उसी दृष्टि से संदेश को ग्रहण करे। वहीं बात करें प्रतीकों या चिन्हों की तो इनके माध्यम से जो संदेश जाता है, लगभग पूरा समाज उसे एकरूप से ही आत्मसात करता है।

प्रतीकों में सर्वाधित महत्वपूर्ण यदि कोई वस्तु है तो वह निसंदेह ध्वज या पताका है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में तो ध्वज हमेशा से ही धर्म, यश, कीर्ति, विजय, सकारात्मक ऊर्जा, पहचान और शौर्य का द्योतक रहा है। काल और परिस्थिति के अनुरूप विभिन्न ध्वजों के उपयोग के उदाहरण हमें मिलते हैं। हिन्दू धर्म में घरों पर ध्वज लगाने की परंपरा पुरानी है। किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य के दौरान या फिर त्योहारों में घर पर ध्वज लगाया जाता है। राजध्वज, संप्रदायों के ध्वज, किसी विशेष समुदाय, संस्था या गतिविधि से संबंधित ध्वज।

वहीं युद्ध-काल या रणभूमि में झंडों का विशेष रूप से प्रयोग होता है। यह झंडे संकेत के द्वारा सूचना देते हैं। महाभारत युद्ध में प्रत्येक योद्धा का अलग ध्वज था। सिख साम्राज्य की स्थापना करने वाले महाराजा रंजीत सिंह के युद्ध ध्वज में अंकित ‘देवी चण्डी, वीर हनुमान और भैरौ’ के चित्र शत्रु सेना को कंपित करने के साथ-साथ अपनी सेना में वीरता का संचार करते थे। ऐसे प्रत्येक ध्वज अपने-अपने समाज से एक ठोस प्रतीक के रूप में संवाद करते आए हैं और करते रहेंगे।

22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में श्रीराम मंदिर में भगवान के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर ने पूरा देश को राम रंग में सराबोर कर दिया। इस दौरान देश का हर परिवार, संस्था और प्रतिष्ठान राम काज और राम उत्सव में सम्मिलित होने के लिए उत्साहित रहा। राम कथा का पठन-श्रवण, घरों की सजावट, भजन, कलश यात्राएं, प्रसाद वितरण, दीप प्रजवल्लन, कीर्तन, सोशल मीडिया के संदेश सरिखे अनेकों माध्यमों से पूरा देश राम धुन में मग्न रहा। हर कोई अपनी सुविधा, समझ और सामर्थ्य अनुसार राम संवाद कर रहा था। इस पूरे प्रकरण में एक और बहुत महत्वपूर्ण प्रतीक था जिससे पूरे समाज ने राममयी एकात्मता का संदेश दिया, वह था ‘श्रीराम ध्वज’।

इस दौरान हर घर, चौराहा, संस्थान, प्रतिष्ठान, बाजार, वाहन, वन, पर्वत, नदियां, धाम और लगभग हर स्थान पर समाज ने श्रीराम ध्वज स्थापित किया। श्रीराम ध्वज की ऐसी धूम थी कि दुकानों के साथ-साथ एमाजॉन और फिल्पकार्ट जैसे ऑनलाइन बाजारों में भी इसकी बिक्री हो रही थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि ध्वज कोई संस्था या संगठन नहीं अपितु स्वयं समाज के लोग बाजार से खरीदकर इन्हें अपने घरों और दुकानों की छतों पर लगा रहे थे। एक समय ऐसा भी आया जब लोगों को श्रीराम ध्वज बाजार में और ऑनलाइन तक मिलना बंद हो गया। पूरा भारत ‘श्रीराम ध्वज’ से सुशोभित दिखा।

वाल्मीकि रामायण में एक कथन आता है ‘एष वै सुमहान् श्रीमान् विटपी सम्प्रकाशते। विराजत्य् उद्गत स्कन्धः कोविदार ध्वजो रथे।’ जिसके अनुसार जब भरत श्रीराम से अयोध्या वापस लौटने की प्रार्थना के लिए चित्रकूट गये थे, तब उनके रथ पर कोविदार पेड़ ध्वजा पर अंकित था। भारद्वाज आश्रम में विश्राम कर रहे भगवान राम शोर सुनकर लक्ष्मण से देखने को कहते हैं। सेना के रथ पर लगे ध्वज को देख लक्ष्मण समझ गए कि सेना अयोध्या की है।

जिस प्रकार अयोध्या के राजध्वज से उस समय संकेत मिला कि यह अयोध्या की सेना है, वैसे ही राम ध्वज ने पूरे विश्व को संदेश दिया कि यह श्रीराम का राष्ट्र है। श्रीराम ध्वज के माध्यम से पूरे देश और समाज ने जो संदेश दिया उसे एक सुसंगत राष्ट्रीय संवाद के रूप में ही देखना चाहिए। एक ऐसा संवाद जिसमें बिना शब्दों और आधुनिक मीडिया के सहयोग के पूरा देश सम्मिलित हुआ और विश्व को राष्ट्रीय एकात्मता और परायणता का संदेश दिया।

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