अल-जजीरा भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्थिति और अल्पसंख्यकों की हालत को लेकर खासा चिंतित रहता है, लेकिन उसके अपने देश में इन मुद्दों की हालत काफी चिंताजनक है। इन सभी मोर्चों पर भारत की स्थिति इस चैनल के अपने देश से काफी बेहतर है। फिर चैनल बात-बात पर भारत को उपदेश कैसे देता है? शायद भारतीयों ने यह प्रश्न कभी पूछा नहीं कि जनाब आपके देश में क्या हाल है?
अपने अस्तित्व से ही अनवरत विवादों में रहा है कतर। कभी एकाधिकारवादी मानसिकता व नीतियों के कारण तो कभी राजनीतिक-कूटनीतिक संकट के चलते। पिछले पांच दशकों से मीडिया व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दमनकारी कानून के सम्बन्ध में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं व मीडिया संस्थानों द्वारा घोर आलोचनाएं सहनी पड़ रही है। हाल में भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया कर्मियों के कार्य को प्रतिबंधित करने वाला एक नया कतरी कानून आया है।
जिसमें “कोई भी कतरी देश-विदेश में झूठी या पक्षपातपूर्ण अफवाह, बयानों, या समाचारों का प्रकाशन-प्रसारण करता है, जो राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाता है, जनमत को प्रभावित करता है, या राज्य के सार्वजनिक व सामाजिक निर्णयों की चर्चा व आलोचना सार्वजनिक रूप से करता है तो वह दोषी माना जाएगा”। इस कानून के तहत्त अपराधी को अधिकतम एक लाख कतरी रियाल का जुर्माना और पांच साल तक की जेल होगी।
कतर का यह नया फरमान अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, जिस पर उसने दो साल पहले ही आईसीसीपीआर साल 2018 की बैठक में हस्ताक्षर किए थे। इस पर मध्य-पूर्व देशों समेत अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया चैनलों, अखबारों, वेबसाइट पर खूब चर्चा रही, सिवाए अल-जजीरा के। कतर के अंग्रेजी अखबार अल राया ने अपनी वेबसाइट पर इस कानून को लेकर जब गम्भीर चर्चा की, विस्तृत विश्लेषण किया, तो दबाव के चलते अखबार को लेख हटाने के लिए और माफीनामा जारी करने के लिए मजबूर किया गया। कारण यह खबर अनौपचारिक स्त्रोत के हवाले से थी, जबकि यह फेक न्यूज नहीं थी।
शुरूआती दौर में कतर सरकार द्वारा न्यूज रूम में सेंसर बिठाए रहते थे, जो यह तय करते थे कि सत्तारूढ़ थानी परिवार व उसके निर्णयों के बारे में, क्या प्रकाशित होगा क्या नहीं। कतर संविधान में अनुच्छेद 48 जो प्रेस की स्वतंत्रता, मुद्रण और प्रकाशन कानूनसम्मत होने की बात करता है। वहीं 1979 का प्रेस कानून आज भी कतरी प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है। यह कानून कहता है कि ‘कतर राज्य के आमीर (प्रधानमन्त्री) की आलोचना नहीं की जाएगी, जब तक कि उनके कार्यालय की ओर से लिखित अनुमति के तहत कोई बयान नहीं दिया जाता है’। इस कानून का उल्लंघन करने वाले पर मानहानि के तहत्त केस दर्ज किया जाता है। कतर में मानहानि के तहत्त अपराधी पर बीस हजार कतरी रियाल का जुर्माना व सात साल की जेल का प्रावधान है। इसीलिए कतर में पत्रकार अक्सर सेल्फ-सेंसर करते हैं, और कुछ भी छापने से डरते हैं, इस भय से कि कहीं उन पर इस कानून का उल्लंघन करने का आरोप न लगाया जाए।
कतर ने ऐसा कानूनी ढांचा तैयार किया हुआ है, जो सत्ताधारी परिवार व उसके निर्णयों की आलोचना या असंतोष को प्रकट करने की स्वतंत्रता को कुचल कर रख देता है। साल 2016 में दोहा न्यूज को भी यही भुगतना पड़ा। कतर में लोकप्रिय अंग्रेजी वेबसाइट दोहा न्यूज, जो अक्सर संवेदनशील राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करती थी, उस पर अनिश्चितकालीन बैन लगा दिया गया। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार दोहा न्यूज वेबसाइट के कर्मचारियों का कहना है कि यह सेंसरशिप पूर्वाग्रह के चलते लगाया गया है।
कतरी संविधान विरोधाभासी है। एक ओर अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता की बात करता है, तो दूसरी ओर राज परिवार व आमीर की आलोचना करने पर प्रतिबंध लगाता है। कतरी कानून सत्ताधारी परिवार को लेकर कितना संवेदनशील है। इसे अरब स्प्रिंग मूवमेंट के दौरान घटी एक घटना से समझा जा सकता है। यह वह दौर था जब खाड़ी देशों में एकाधिकारवादी मानसिकता, सत्तारूढ़ परिवारों के खिलाफ आक्रोश था, अपने अधिकारों और आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। साल 2010 में कतरी कवि मोहम्मद अल-अजमी ने मिस्त्र के काहिरा में अपने अर्पाटमेंट में कुछ लोगों के बीच सत्तारूढ़ थानी परिवार की आलोचना करने वाली एक कविता सुनाई, जो यू-ट्यूब के जरिए काफी वायरल हुई। लोगों ने वीडियो को काफी पसन्द किया। जिसके बाद 2011 में मोहम्मद अल-अजमी को गिरफ्तार किया गया और आरोप लगाया कि सरकार को उखाड़ फेंकने और सार्वजनिक रूप से आमीर की आलोचना करना अपराध है। परिणामस्वरूप अल-अजमी को साल 2012 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। साल 2013 में अपील करने के बाद अदालत ने सजा को घटाकर 15 साल कर दिया था। अल-अजमी की रिहाई के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कैंपेन चलता रहा, जिसके बाद दबाव के चलते चार साल बाद अजमी को बशर्ते रिहा करना पड़ा। इसके बाद कतर की न्यायपालिका में खामियों की आलोचना करने पर, अल-अजमी के वकील, नजीब अल-नूमी को निशाना बनाना जारी रखा। फरवरी 2017 में, सरकार ने अल-नूमी पर मन-मुताबिक यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया।
खाड़ी देशों में 10 में से 9 युवा किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं। यह खुलासा ऑरेगोन विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं संचार स्कूल ने अपनी रिसर्च में किया है। कतर में इन्टरनेट पर भी सेल्फ-सेंसरशिप की मंशा वाला साइबर अपराध कानून 2014, जो अरब स्प्रिंग मूवमेंट के बाद लाया गया। जिसके अन्तर्गत ‘इंटरनेट पर झूठी खबर के प्रसार को अपराधी बताता है और जो सामाजिक मूल्यों, सिद्धांतों का उल्लंघन करता है या दूसरों की निंदा या अपमान करता है, ऑनलाइन आपत्तिजनक पोस्ट करने’ के दोषी को अधिकतम पांच लाख कतरी रियाल और तीन साल जेल का प्रावधान है।
सेल्फ-सेंसरशिप के एक उदाहरण के रूप में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कतर में होने वाले फीफा वर्ल्ड कप 2022 के लिए प्रवासी मजदूरों के उत्पीडन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें पाया गया कि ज्यादातर स्थानीय मीडिया ने प्रवासी मजदूरों के विषय को कवर ही नहीं किया।
कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आरोप लगाए हैं कि कतर में प्रवासी मजदूरों को अवैध रूप से निष्कासित किया गया। एमनेस्टी के मुताबिक ‘मार्च 2020 में सैकड़ों लोगों को कतर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया, जिसमें से 20 नेपाली पुरुषों का साक्षात्कार लिया। उसमें अधिकांश लोगों ने कहा कि उन्हें यह कहकर पुलिस ले गई कि उनका कोरोना टेस्ट किया जाएगा और स्क्रीनिंग के बाद वे अपने घरों को लौट सकते हैं। जबकि उन्हें केंद्रों पर नजरबंदी के लिए ले जाया गया, और नेपाल लौटने से पहले कई दिनों तक अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया था’।
कतर में कफाला के अनुसार प्रवासी मजदूरों के साथ व्यवहार किया जाता रहा है। कफाला इस्लामिक प्रणाली है, जो प्रवासी मजदूरों के तमाम अधिकारों को मालिक के अधीन मानती है। जो प्रवासी मजदूर को गुलाम बना देती है। इसी तर्ज पर कतर में प्रवासी मजदूरों के पासपोर्ट उनके मालिक जब्त कर लेते हैं, उचित वेतन नहीं देते हैं, जोकि प्रवासी श्रमिक अधिकारों का उल्लंघन है।
जो पत्रकार व शोधकर्ता प्रवासी श्रमिकों के हालातों की जांच करने का प्रयास करते हैं, कतर में उनकी गिरफ्तारी का इतिहास रहा है। गल्फ सेन्टर फॉर ह्यूमन राइट्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2015 में जर्मन प्रसारक डब्लूडीआर और एआरडी के लिए विश्व कप के आसपास होते भ्रष्टाचार पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने वाली टीम को गिरफ्तार कर लिया और उनके उपकरण को जब्त कर लिया।
15 मई 2016 को कतरी अधिकारियों ने बीबीसी के एक पत्रकार और उसके समूह को प्रवासी श्रमिकों की परिस्थितियों को कवर करने पर हिरासत में लिया।
16 मई 2016 को, डेनिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के पत्रकार जो प्रवासी श्रमिकों के फुटबॉल मैच को कवर कर रहे थे। को, हिरासत में लिया गया था और उनके फुटेज को छीन लिया गया था।
दोहा न्यूज पर बैन लगने से पूर्व कतरी सरकार ने बाल यौन शोषण के एक मामले को कवर करने के लिए साइबर कानून के तहत्त दोहा के संपादकों में से एक को हिरासत में ले लिया।
2016 में ही कतरी अधिकारियों ने जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस के एक अमेरिकी छात्र को हिरासत में लिया जो कतर में प्रवासी श्रमिकों की परिस्थितियों का अध्ययन करने के लिए आया था।
कतर पर आतंकवाद का समर्थन करने के आरोप भी समय-समय पर लगते रहे हैं, मध्य-पूर्वी देशों समेत कई अन्य देश अल-कायदा और कतर के बीच संबंधों की बात करते हैं। अल-जजीरा के एक पूर्व पत्रकार, योसरी फॉउदा ने भी अपनी किताब ‘इन दि वे ऑफ हार्मः फ्रॉम दि स्ट्रॉन्गहोल्डस् ऑफ अल-कायदा टू दि हार्ट ऑफ आईएसआईएस’ में बताया है कि कैसे पूर्व कतरी अमीर, शेख हमद बिन खलीफा अल थानी, ने अल-कायदा के साथ अपने मुलाकात के वीडियो रिकॉर्डिंग प्राप्त करने के लिए एक मिलियन यूएस डॉलर का भुगतान किया। फाउदा के अनुसार 2002 में हमद बिन खलीफा ने छुपकर अल-कायदा के सदस्यों के साथ मुलाकात की थी।
इसी तरह अपनी पुस्तक ‘इनसाइड अल-कायदा’ में, लेखक रोहन गुणरत्न ने लिखा: ‘यह निश्चित है कि कतर में शाही परिवार का एक सदस्य अल-कायदा संगठन का समर्थन करता है’।
एबीसी न्यूज ने अमेरिकी खुफिया अधिकारियों के हवाले से कहा कि ओसामा बिन लादेन, सत्तारूढ़ परिवार के सदस्य अब्दुल्ला बिन खालिद अल-थानी से मिलने 1996 से 2000 के बीच में कतर गया था।
कतर में गहराते मानवाधिकार व प्रवासी मजदूर संकट, मीडिया की बद्दतर स्थिति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते कानून, सेल्फ-सेंसरशिप नीतियां, आतंकवाद को पनाह देने वाले जैसे गम्भीर मुद्दों पर अल-जजीरा चुप्पी साधता रहा है।
सत्तारूढ़ परिवार पर यह आरोप बार-बार लगता रहता है कि उसने सभी मंत्रालयों में अपने परिवार व सगे-संबंधियों को बिठा रखा है। कतर के सबसे बड़े मीडिया संस्थान अल-जजीरा का बोर्ड अध्यक्ष शेख हमद बिन थमेर अल थानी, सत्तारूढ़ परिवार से ही है, जो इसे पूर्णरूप से नियंत्रित करता है।
मीडिया संस्थान के नाम पर अल-जजीरा थानी परिवार का राजनीतिक टिप्पणीकार है। कतरी सरकार अल-जजीरा के बैनर तले अपने विरोधियों के विरुद्ध मीडिया कैम्पेन चलाता आया है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर अपनी छवि बेहतर दिखाने का प्रयास करता रहा है, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। कतर शासित मीडिया अल-जजीरा की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी है, और पूर्वाग्रह से कितना ग्रसित है, यह तथ्य भी खुलकर सामने आ रहे हैं।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
Comments
Please Login to Submit Your Comment