14 जुलाई को ‘द हिन्दू’ ने अपनी वेबसाइट पर एक खबर ब्रेक की। जिसके बाद यकायक भारत सरकार और विदेश नीति पर सवालों की बौछार शुरू हो गई। सोशल मीडिया की बदौलत हर कोई विदेशी मामलों का जानकार बना फिरने लगे। कुछ मीडिया घरानों ने तो इस खबर पर विदेशी मामलों के जानकारों की टिप्पणियां दर्ज करवानी शुरू कर दी। मगर अगले ही दिन यह सब धरा का धरा रह गया, जब दूसरा पक्ष सामने आया।
दरअसल, द हिन्दू ने खबर प्रसारित की, कि ईरान ने भारत को चाबहार रेल प्रोजेक्ट से हटा दिया है। द हिन्दू के मुताबिक भारत की तरफ से वित्तीय देरी के चलते चाबहार बंदरगाह से जाहेदान तक का यह रेल प्रोजेक्ट, ईरान स्वयं से पूरा करेगा। 15 जुलाई को ईरान की तरफ से इस खबर पर प्रतिक्रिया आई। ईरान द्वारा इस खबर का खंडन करते ही, तथाकथित विदेशी मामलों के जानकार, जो पहले इस खबर की तर्ज पर भारत सरकार की विदेशी नीति को कोसने व सवाल दागने में लगे थे, सभी अपनी बगल झांकने में लग गए।
ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन के डिप्टी फरहाद मोंतासिर ने कहा कि यह दावा पूरी तरह गलत है। उन्होंने बताया कि चाबहार में निवेश के लिए ईरान में भारत के साथ सिर्फ दो समझौतों पर हस्ताक्षर हुआ था। पहला पोर्ट की मशीनरी और उपकरणों के लिए और दूसरा भारत द्वारा 150 मिलियन डॉलर के निवेश को लेकर। मोंतासिर ने सफाई दी चाबहार में ईरान द्वारा भारत के सहयोग पर किसी भी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। अल-जजीरा द्वारा ईरान का पक्ष सामने रखने के बाद भारत में रहने वाले भारत विरोधियों की उम्मीदों को झटका लगा है।
द हिन्दू ने इस खबर के साथ चीन द्वारा ईरान में किये जाने वाले निवेश को भी जोड़ा है। द हिन्दू के अनुसार इस रेलवे प्रोजेक्ट की शुरूआत उस समय हुई है, जब चीन ने ईरान के साथ, आने वाले 25 सालों तक 400 बिलियन डॉलर की रणनीतिक साझेदारी को अंतिम रूप दिया है। द हिन्दू के मुताबिक इससे ईरान में भारत की योजनाएं धूमिल पड़ सकती हैं। जबकि ईरान सरकार का कहना है कि चाबहार पोर्ट में निवेश के अलावा, भारत तुर्कमेनिस्तान की सीमा पर चाबहार से जाहेदान तक और जाहेदान से सराक की सीमा तक इस स्ट्रेटजिक ट्रांसिट रूट के निर्माण और वित्तपोषण में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भारत-चीन सीमा विवाद के दौरान अप्रत्यक्ष रूप से चीन का हित साधने में लगा भारतीय मीडिया का चीनी संस्करण अब ईरान के नाम पर झूठ फैलाकर भारत विरोधी गतिविधियों में उत्प्रेरक के रूप में काम कर रहा है। बलूचिस्तान से लगे ईरान के तटीय हिस्से में स्थित चाबहार बंदरगाह अपनी रणनीतिक स्थिति और अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, और कजाखस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों के निकटतम होने के कारण भारत के उपयोग के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समझने के बजाय, भारतीय मीडिया का एक धड़ा अलग-अलग मोर्चों पर भारत के खिलाफ एक प्रोपेगेंडा सीरीज चलाने में लगा हुआ है।
‘मेड इन चाइना’ मीडिया जो चाबहार बंदरगाह के माध्यम से ईरान-भारत-अफगानिस्तान त्रिपक्षीय सहयोग विकास परियोजना की विफलता का दावा करने में लगा है, उसे यह जानना जरूरी है कि 17 जुलाई को अफगानिस्तान से तीसरा ट्रांसिट कार्गो शिप चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत के लिए रवाना हुआ। लगभग बीस दिन पहले चाबहार बंदरगाह के माध्यम से सूखे फलों का अफगानिस्तान का पहला और दूसरा ट्रांसिट कार्गो भारत ने आयात किया था।
इसी बीच, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से ही भारतीय गेहूं को अफगानिस्तान ले जाया जा रहा है, अब तक पांच जहाजों को चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के लिए स्थानांतरित कर दिया गया है। यब सब इस बात की ओर संकेत करता है कि यह ईरान-भारत-अफगानिस्तान त्रिपक्षीय सहयोग विकास परियोजना अपने उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध है।
2024-04-08
2024-04-08
- बाबूराव विष्णु पराड़कर
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