शक्ति का आकाशीय मिशन

27 मार्च 2019 भारत के लिए ऐतिहासिक दिन रहा, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित कर बताया कि ‘मिशन शक्ति के तहत भारत के वैज्ञानिकों द्वारा 3 मिनट के भीतर लो अर्थ ऑरबिट में 300 किलोमीटर दूर, पूर्वनिर्धारित ‘लाइव सैटेलाइट’ को, एंटी-सैटेलाइट मिसाइल द्वारा मार गिराया है’। डीआरडीओ के तकनीकी मिशन की बदौलत ‘मिशन शक्ति’ के सफल परीक्षण के साथ भारत अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बन गया। ‘फर्स्ट मार्डन वॉर’ यानि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान संचारीय युद्ध ने दस्तक दी थी। जो संकेत था, आने वाले समय में ‘इन्फॉरमेशन वॉर’ का। समय बीता, नई तकनीक इजाद हुई और आज सूचना का दौर आ गया, आधुनिक समय में सूचना और संचार सबसे बड़ा और मारक हथियार है। संचार के बिना अब वर्तमान और भविष्य की कल्पना करना अमावस में चांद ढूंढने जैसा है। कोई भी देश तभी प्रगति करता है, जब वह सुरक्षित हो। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अब भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु जल, थल और वायु से लेकर अब अंतरिक्ष में भी अपनी पकड़ मजबूत बना ली है। किसी भी देश के लिए युद्ध के समय संचार अहम भूमिका निभाता है। वर्तमान समय में जितनी जरूरत भूमिगत हथियारों की महसूस हो रही है, उससे कहीं अधिक आज और आने वाले कल को सशक्त संचार माध्यमों के निर्माण और उनकी सुरक्षा की होगी। इस जरूरत को पूरी करता, एंटी-सैटेलाइट मिसाइल एक ऐसा हथियार है, जो युद्ध के दौरान, दुश्मन देशों के संचार और सैन्य उपग्रहों को बाधित करने की क्षमता रखता है और उनका उपयोग अपने सैनिकों के साथ संचार करने से रोकने के लिए किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल सैन्य टुकड़ी या आने वाली मिसाइलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए भी किया जा सकता है। एंटी सैटेलाइट मिसाइल शत्रु देश के लो ऑरबिट के उपग्रहों पर ‘पेलेट क्लाउड’ हमले कर सकता है। ए-सैट, स्पेस सिस्टम पर साइबर हमले, इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक पल्स (ईएमपी) विस्फोट उपकरण, लेजर आधारित हथियार और दुश्मन के सैन्य अभियानों को नष्ट कर सकता है। ए-सैट में अन्य उपग्रहों के विनाश के लिए लक्षित मिसाइलें शामिल होती है, साथ ही यह अंतरिक्ष में फैले अपने उपग्रहों की पुख्ता सुरक्षा करने में भी अहम भूमिका निभाता है। हालांकि, मिशन शक्ति के सफल परीक्षण की घोषणा करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आश्वासन दिया कि ‘भारत ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल क्षमता प्राप्त की है, यह किसी भी देश के विरूद्ध नही है, यह केवल भारत की सुरक्षा के लिए है। भारत हमेशा अंतरिक्ष में शस्त्रीकरण और बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ का विरोध करता रहा है, और यह परीक्षण किसी भी स्थिति में इस नीति को नहीं बदलता है। आज का परीक्षण किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून या संधि व समझौतों का उल्लंघन नहीं करता है। भारत आधुनिक तकनीक का उपयोग देश के नागरिकों की सुरक्षा व कल्याण के लिए उपयोग करेगा और हमारा सामरिक उद्देश्य शांति बनाए रखना है’। भारत की इस अभूतपूर्व सफलता पर कई देशों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। चीन ने सतर्कतापूर्ण प्रतिक्रिया देकर कहा कि ‘हम आशा करते हैं कि सभी देश अंतरिक्ष में दीर्घकालिक शांति एवं स्थिरता कायम रखने के लिए वास्तविक कदम उठाएंगे’। मिशन शक्ति की सफलता पर पडोसी देश पाकिस्तान ने कथित रूप से कहा कि ‘अंतरिक्ष मानव जाति की साझी विरासत है और हर देश की जिम्मेदारी है कि वह उन कार्यों से बचे, जिनसे इस क्षेत्र का सैन्यीकरण हो’। इंडिया टुडे के मुताबिक पाक ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भारत की इस कार्रवाई की निंदा करने और अंतरिक्ष को सैन्यीकरण के बारे में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को मजबूत करने की अपील की। भारत की सफलता से पाकिस्तान की छट-पटाहट, इस बयान से साफ देखी जा सकती है। रूस ने इस परीक्षण पर सकारात्‍मक रुख दिखाते हुए भारत के साथ संयुक्‍त भागीदारी की पेशकश की। भारत की सफलता के बाद रूस की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अंतरिक्ष क्षेत्र में हथियारों की होड़ को रोकने व स्‍थाई शांति के लिए बहुपक्षीय वैश्विक पहल में राजनीतिक दायित्‍व खासा महत्‍वपूर्ण है और रूस इसमें भारत की भागीदारी का समर्थन करता है। अपने बयान में रूस ने अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ रोकने पर भी जोर दिया। अमेरिका का भारत के इस परीक्षण पर दोहरा चरित्र देखने को मिलता है, एक ओर अमेरिका कहता है कि ‘दोनों देश मजबूत सामरिक साझेदारी के तौर पर अंतरिक्ष एवं विज्ञान के क्षेत्र में साझा हितों के लिए साथ मिलकर काम करते रहेंगे और अंतरिक्ष में सुरक्षा को लेकर गठजोड़ सहित अन्‍य तकनीकी सहयोग जारी रखेंगे’। वहीं दूसरी ओर नासा मिशन शक्ति की सफलता को ‘टेरिबल थिंग’ (भयानक बात) करार देकर कहता है कि ‘भारत द्वारा नष्ट किए गए उपग्रह से अंतरिक्ष की कक्षा में 400 टुकड़ों का मलबा हुआ, जिससे इंटरनेशनल स्पेस सेंटर पर खतरा पैदा हो गया है’। नासा के इस बयान पर डीआरडीओ की तरफ से कहा गया कि ‘यह परीक्षण मलबे को ध्यान में रखते हुए किया गया है और 45 दिनों में यह मलबा अंतरिक्ष से क्षरित होकर धरती पर गिर जाएगा’। साथ ही डीआरडीओ ने यह भी कहा कि ‘चीन के दो परीक्षणों का मलबा अभी भी अंतरिक्ष में बह रहा है’। अब सवाल उठता है कि नासा को 2007 में टेरिबल नही लगा, जब यही परीक्षण चीन ने किया था? एक भारतीय होने के नाते यह गर्व करने वाली बात है कि एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप लॉन्च कॉम्पलेक्स से डीआरडीओ के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर मिसाइल के सहयोग से ‘स्वदेशी तकनीक’ पर आधारित ‘एंटी सैटलाइट मिसाइल’ का उपयोग कर पहली बार में ही मिशन शक्ति का सफल परीक्षण हुआ। इस सफल परीक्षण के साथ शत्रु देशों को स्वतः ही संदेश जाता है कि भारत गीदड़ भभकी से डरने वाला नही है, और भारत अब पूर्ण रूप से, अंतरिक्ष में भी अपनी पुख्ता सुरक्षा की क्षमता रखता है। बहरहाल यह तो शुरूआत है, मेक इन इंडिया की, समृद्ध भारत की, सशक्त भारत की, सुरक्षित भारत की और आधुनिक तकनीक के साथ चलने वाले भारत की। यही तो परिकल्पना है नए भारत की।

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