मनोगत

मनोगत - मई, 2020  :-


कथा कठोपनिषद की है। नचिकेता ने देखा कि उसके पिता वृद्ध, कमजोर, और दूध न देने वाली गायों के दान का पाखण्ड कर रहे हैं, जबकि अपनी स्वस्थ व दुधारू गायों को उन्होंने छिपा दिया है। नचिकेता पिता से पूछता है, मैं भी आपका धन हूँ, आप मुझे किस को दान करेंगे। पिता कोध में उसे यमराज को देने की बात कहते हैं और नचिकेता यमराज की ओर चल पड़ता है।
नचिकेता यमराज से ‘अग्नितत्व’ और ‘आत्मतत्व’ का ज्ञान प्राप्त करके करके आता है, यह कथा अलग है,किन्तु वर्तमान संदर्भ में सत्य के लिये आग्रह, उसे विनम्रता के साथ, किन्तु निर्भीक और निष्पक्ष रूप से कह देने का साहस, उसकी कीमत चुकाने की तैयारी भी, यह नचिकेता की कथा का सार है। निर्भीकता, निष्पक्षता और मूल्याधारित होना भारतीय पत्रकारिता की परम्परा रही है। इसका निर्वाह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से बहुत पहले, आधुनिक पत्रकारिता के जन्म के साथ ही भारत में अंतर्भूत मूल्य के रूप में होता आया है। अधिकारों की भाषा तुलना में नयी शब्दावली है। किन्तु सत्ता और बाजार के बढ़ते दवाबों के बीच उनका अपना महत्व है।
संवादसेतु प्रारंभ होने के बाद भी नियमित नहीं रह सका। बीच में अनेक अंक छूटते रहे। फिर भी एक जुनून था जो इसे बार-बार सामने लाता रहा। रामसेतु के निर्माण में यह गिलहरी जैसा योगदान है, नगण्य है। किन्तु निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता के वैश्विक लक्ष्य की पूर्णता के लिये हो रहे प्रयासों में हमारी यह नगण्यता ही समर्पित है।
चुनौती भरे वर्तमान में किसी तथ्य को सत्य की कसौटी पर परखने के बाद भी उसे कह न सकने की विवशता जब पत्रकार के मन में घनीभूत होती है तो उसे सारी सीमाएं, सारे बाँध तोड़ कर बाहर आना ही होता है। यही स्थिति पत्रकारों की उस छोटी टोली की भी है, जो लगभग एक दशक से संवादसेतु को आकार दे रही है।
मस्तिष्क के भीतर घुमड़ती विचारों की ऊर्जा अपने अंतस् को ही दग्ध कर देगी, यहि उसे वाह्य आकाश नहीं मिला तो। जब-जब यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है, संवादसेतु पुनः प्रकट होता है उस ऊर्जा, उस चेतना को संजोये हुए, नये कलेवर में। यह ‘मिशन अथवा प्रोफेशन’ की बहस से परे अभिव्यक्ति का वह स्तर है जो आध्यात्म के आधार पर अपने वर्तमान को गढ़ने की कोशिश करता है।
सत्य की खोज, उसकी अनुभूति, उसकी अभिव्यक्ति की परम्परा भारत भूमि पर तब से जारी है “जब सत् नहीं था, असत् भी नहीं था, ईश्वर भी नहीं”। एक दिन अवश्य भौतिक जीवन में ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खोजने वाला पत्रकारिता जगत् यह अनुभूति कर पायेगा कि यह जीवन भी किसी ‘स्वतंत्र’ की ‘अभिव्यक्ति’ है, उस दिन निर्भीकता और निष्पक्षता के प्रस्ताव अर्थहीन हो जायेंगे। संवादसेतु तब तक अपनी इस यात्रा में आगे बढ़ता रहेगा, ठहरते, ठिठकते, सिंहावलोकन करते हुए, मीडिया की आत्माभिव्यक्ति बन कर।
3 मई 2020, निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता दिवस की शुभकामना सहित


आशुतोष भटनागर