हरीश चन्द्र ठाकुर

तकनीकी संवाद से मतदाता का मूड भांप रही सर्वे एंजेसियां

देश में आम चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले ही सर्वे एजेंसियां मतदाताओं का मूड जानने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो गई हैं। ग्राउंड जीरो पर जाकर सर्वे करने की पुरानी तकनीक को पीछे छोड़ अब नए तकनीकी माध्यमों से मतदाताओं से सीधे संवाद के जरिये सर्वे एजेसियां सर्वेक्षण कार्य कर रही हैं। वहीं, सर्वेक्षण एजेंसियां सोशल मीडिया सहित मोबाइल पर सीधे कॉल कर जनता का मूड भांप रही हैं। ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं के मोबाइल नंबरों पर सीधे कॉल आने से मतदाता भी सकते में हैं। उदाहरण के तौर पर हम देखें, तो हिमाचल में अभी अंतिम अर्थात सातवें चरण में मतदान होना है। इसके लिए अभी काफी समय होने के बावजूद अभी से मतदाताओं से सर्वे कर एजेंसियां राह ले रही है। 

इसी तर्ज पर पूरे दिन में मुख्य सीटों पर जहां चर्चित या कोई बॉलीवुड स्टार उम्मीदवार हैं, वहां सर्वे एंजेसियों का विशेष फोकस कर रही हैं। वहां के मतदाताआंें को दो-दो कॉल कर रही हैं। इसके अलावा ग्राउंड जीरो पर रिपोर्ट करने या सर्वे करने वाली एंजेसियों की रिपोर्ट को आने के लिए हालांकि समय लगेगा, लेकिन तकनीक के माध्यम से सर्वे करने वाली सर्वे एजंेसियां मतदान से पूर्व की कई बार रिपोर्ट सार्वजनिक कर देती हैं। वहीं, दूसरी ओर चुनाव आयोग ने भी मतदान से पूर्व सर्वे की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए अनेक प्रकार के नियम तय किए हैं, जिसका सभी सर्वे एंजेसियों को पालन करना अनिवार्य है, अन्यथा ऐसी एजेंसियों पर कार्रवाई भी हो सकती है।

वॉयस संदेश से प्रचार करने पर भी रहेगी चुनाव आयोग की निगरानी

चुनाव आयोग ने राजनैतिक दलों के प्रचार के हर माध्यम पर कड़ी नजर बनाई है। अब प्रत्याशियों को लोकसभा चुनाव में बल्क एसएमएस, वॉयस संदेश, सिनेमा हॉल, एलईडी, निजी एफएम रेडियो पर विज्ञापन चलाने से पहले प्रमाणीकरण करवाना होगा,जिसके लिए निवार्चन अधिकारी से अनुमति होगी।  बिना प्रमाणीकरण चलाए जाने वाले विज्ञापन उम्मीदवार के खर्चे में जोड़े जाएंगे। चुनाव आयोग की ओर से इसके लिए बकायदा कार्ड रेट भी तय कर दिए हैं।

इस बारे चुनाव आयोग ने सभी निर्वाचन अधिकारियों को जिला व उपमंडल स्तर पर कार्यशालाएं भी आयोजित की जा रही है। कार्यशाला में आदर्श आचार संहिता के दौरान पेड न्यूज, फेक न्यूज, मीडिया प्रमाणन एवं निगरानी समिति की कार्यप्रणाली, सोशल मीडिया से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चुनावी विज्ञापनों के पूर्व प्रमाणन संबंध में भी जानकारी साझा की गई।

सोशल मीडिया व ई-पेपर को भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दायरे में रखा गया है। चुनावी विज्ञापन से संबंधित सामग्री के प्रसारण से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विज्ञापनों का पूर्व प्रमाणीकरण कर लिया गया है। विभिन्न समाचार पत्रों में केवल मतदान के दिन, बल्कि एक दिन पहले भी राजनीतिक विज्ञापन जारी करने के लिए पूर्व आवश्यक है। चुनावों के दौरान कोई भी जानकारी प्रसारित करने से पूर्व उसकी सत्यता अवश्य जांच लें। इस प्रकार की पहल से प्रत्याशियों को भी एक तय सीमा में ही प्रचार माध्यमों का उपयोग करना होगा।

संवाद को दैवीय धरातल प्रदान करता है मंडी का देव महाकुंभ

कलियुग में भी धरती पर देवताओं का महाकुंभ हो सकता है, इसका प्रमाण देवभूमि हिमाचल प्रदेश के छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी जिला मुख्यालय पर हर साल शिवरात्रि को देखने को मिला है। छोटी काशी मंडी में हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर सैंकड़ों देवी-देवता शिरकत करते हैं और लगभग एक सप्ताह तक देवताओं और वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि से छोटी काशी मंडी मदमग्न होती है। हर साल देवी-देवता यहां आकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देव संवाद करते हैं, जिसका गवाह हजारों श्रद्धालु बनते हैं। हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर देवभूमि हिमाचल का मंडी शहर देवों के देव महादेव के उत्सव के कारण सुर्खियों में रहता है। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी में पुरातन संस्कृति और देवताओं के अद्भुत मिलन के कारण यहां हर जगह देवी-देवताओं के आगमन से माहौल भक्तिमय होता है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से प्रारंभ होने वाले इस उत्सव में आने के लिए 216 से अधिक देवी-देवताओं को रियासत काल से न्योता दिया जाता है। मंडी जनपद के आराध्य देवता देव कमरूनाग के आगमन से शिवरात्रि से एक दिन पूर्व उत्सव का विधिवत आगाज होता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि उत्सव का प्रमुख आकर्षण देवताओं की शोभायात्रा (जलेब) होती है। इसे राज देवता माधो राय की जलेब भी कहते हैं। शिवरात्रि के आखिरी दिन देव कमरूनाग मेले में आकर सभी देवताओं से मिलते हैं, वहीं पर उत्तरशाल के ही एक व प्रमुख देवता आदिब्राह्मण का गूर भी शहर की रक्षा व समृद्धि की कामना से कार बांधता है। साथ ही अंतिम मेले की पूर्व संध्या पर राजा के बेहड़े अर्थात महल में देव पराशर व देव शुकदेव ऋषि की जाग भी होती है। जाग में देव पराशर ऋषि के गुर लोगों से संवाद के माध्यम से आने वाला वर्ष कैसा रहेगा, इसका उल्लेख भी करते हैं। छोटी काशी मंडी के शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार 1788 में मंडी रियासत की बागडोर राजा ईश्वरीय सेन के हाथ में थी। मंडी रियासत के तत्कालीन नरेश महाराजा ईश्वरीय सेन, कांगड़ा के महाराज संसार चंद की कैद में थे। शिवरात्रि के कुछ ही दिन पहले वह लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे। इसी खुशी में ग्रामीण भी अपने देवताओं को राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर की ओर चल पड़े। राजा व प्रजा ने मिलकर यह जश्न मेले के रूप में मनाया। महाशिवरात्रि का पर्व भी इन्हीं दिनों था व शिवरात्रि पर हर बार मेले की परंपरा शुरू हो गई। वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार मंडी के पहले राजा बाण सेन शिव भक्त थे, जिन्होंने अपने समय में शिवोत्सव मनाया। बाद के राजाओं कल्याण सेन, हीरा सेन, धरित्री सेन, नरेंद्र सेन, हरजयसेन, दिलावर सेन आदि ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। अजबर सेन, स्वतंत्र मंडी रियासत के वह पहले नरेश थे, जिन्होंने वर्तमान मंडी नगर की स्थापना भूतनाथ के विशालकाय मंदिर निर्माण के साथ की व शिवोत्सव रचा। छत्र सेन, साहिब सेन, नारायण सेन, केशव सेन, हरि सेन, प्रभृति सेन राजाओं के शिवभक्ति की अलख को निरंतर जगाए रखा। राजा अजबर सेन के समय यह उत्सव एक या दो दिनों के लिए ही मनाया जाता था। राजा सूरज सेन (1637) के समय इस उत्सव को नया आयाम मिला। ऐसा माना जाता है राजा सूरज सेन के 18 पुत्र हुए। यह सभी राजा के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने एक चांदी की प्रतिमा बनवाई, जिसे माधोराय नाम दिया। राजा ने अपना राज्य माधोराय को दे दिया। इसके बाद शिवरात्रि में माधोराय ही शोभायात्रा का नेतृत्व करने लगे। राज्य के समस्त देव शिवरात्रि में आकर पहले माधोराय व फिर राजा के पास हाजिरी देने लगे। इसके अलावा आज भी राजा परिवार के दरबार में कई देवी-देवता जाते हैं और आज भी राज परिवार के मुखिया से समक्ष झुकते हैं। कहा जाता है कि देवता भी जिस राजा के रियासत में निवास करते हैं, वहां के राजा के प्रति सम्मान स्वरूप ऐसा करते हैं। फाल्गुन में बर्फ के पिघलने के बाद वसंत ऋतु शुरू होती है। ब्यास नदी में बर्फानी पहाडियों के निर्मल जल की धारा मंडी के घाटों में बहने लगती है, फाल्गुन का स्वागत पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां करने लगती हैं। देवलू अपने देवता के रथों को रंग-विरंगा सजाने लगते हैं तो नगर के भूतनाथ मंदिर में शिव-पार्वती के शुभ विवाह की रात्रि को मंडी नगरवासी मेले के रूप में मनाना शुरू करते हैं। लोग महीनों घरों में बर्फबारी व ठंड के कारण दुबके रहने के बाद वसंत ऋतु का इंतजार करते हैं तथा वसंत में जैसे ही शिवरात्रि का त्योहार आता है तो वे सजधज कर मंडी की तरफ कूच शुरू कर देते हैं। वहीं, छोटी काशी मंडी में शिव व शक्तियों के 81 मंदिर हैं। इनमें बाबा भूतनाथ, अर्धनारीश्वर  भी शामिल हैं। यहां भगवान शिव के सभी मंदिर शिखर शैली में मौजूद हैं वहीं पर शक्तियों के मंदिर मंडप शैली में हैं। मंडी में भगवान शिव के 11 रुद्र रूप जबकि नौ शक्तियां हैं। छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी की शिवरात्रि शैव, वैष्णव व लोक देवताओं का पर्व है। शैव मत का प्रतिनिधित्व मंडी नगर के अधिष्ठाता बाबा भूतनाथ करते हैं। वैष्णव का प्रतिनिधित्व राज देवता माधोराय व लोक देवताओं की अगुवाई बड़ा देव कमरूनाग, हुरंग नारायण व देव पराशर आदि देवता करते हैं। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में देवी-देवताओं को उनके रुतबे के हिसाब से राशन का पैसा मिलेगा। मेला कमेटी के पास 216 देवी-देवता पंजीकृत हैं। रुतबे के हिसाब से इन देवी-देवताओं को नौ श्रेणियों में बांटा गया है। प्रथम श्रेणी में चार आराध्य देवों को रखा गया है। इनमें शिवरात्रि महोत्सव के आराध्य देव कमरूनाग भी शामिल हैं। द्वितीय श्रेणी में 78 देवता हैं। इन देवी-देवताओं के देवलुओं को राशन के लिए सात हजार रुपये दिए जाते है।। तृतीय श्रेणी में 45 देवता हैं जिन्हें पांच हजार रुपये तथा चतुर्थ श्रेणी के 40 देवी-देवताओं को राशन के लिए तीन हजार रुपये देते हैं, बाकि श्रेणियों के देवताओं को महोत्सव के दौरान राशन का 25 सौ रुपये देने का प्रावधान जिला प्रशासन की ओर से की जाती है।

घाटी के अनुसार देवी-देवताओं के रथ की शैलियां भी अलग

महाशिवरात्रि महोत्सव में आने वाले देवी-देवताओं के रथ की शैली भी घाटियों के अनुसार अलग-अलग है। मंडी शहर में रिसायत काल शुरू हुए इस शिवरात्रि महोत्सव में मुख्य रूप से सराज घाटी, बल्ह घाटी, बदार घाटी, स्नोर घाटी, चौहार घाटी, नाचन सहित आसपास के क्षेत्रों के देवी-देवता आते है। उपरोक्त घाटियों से आने वाले देवी-देवताओं के रथ की शैली घाटियों के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं। इसके अलावा अलग-अलग घाटी के देवी-देवताओं के वाद्य यंत्रों की धुन और वाद्य यंत्रों को बजाने की विधियां भी हैं। अधिकत्तर देवी-देवता अपनी घाटी के देवी-देवताओं के साथ पहले दिन मिलन करते हैं, उसके बाद अंतिम दिन चौहाटा बाजार की जातर के बाद मिलन के साथ फिर विदाई लेकर अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।

भारत की नई पहचान बन गई है डिजिटलाइजेशन

भारत की प्रतिभा का लोहा अब संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसी संस्था के अध्यक्ष भी मानने लगे है। यूएनजीए के अध्यक्ष ने डिजिटलाइजेशन को लेकर भारत की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि जब वह भारत आए थे, तो उन्होंने यहां डिजिटलाइजेशन को लेकर हो रहे काम को करीब से देखा, जिससे वह बहुत प्रभावित हुए हैं। भारत की तारीफ करते हुए संयुक्त राष्ट्र सभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने कहा इससे भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही गरीबी को कम करने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि अन्य देशों को भी इससे देखना चाहिए। मेरा मानना है कि इसे वैश्विक समुदाय के साथ साझा किया जा सकता है। फ्रांसिस ने कहा कि जब भी मैं भारत के बारे में सोचना हूं तो मुझे अतुल्य भारत याद आता है। जब मैं वहां था तब मैंने इसे देखा था। मैं उल्लेख कर सकता हूं कि भारत में डिजिटलाइजेशन का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा रहा है। बता दें कि फ्रांसिस इस वर्ष ही 22-26 जनवरी तक आधिकारिक यात्रा पर भारत में थे। इस दौरान उन्होंने नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक की और जयपुर और मुंबई की यात्रा भी की थी। यात्रा के दौरान उन्होंने सरकारी अधिकारियों समेत लोगों से चर्चा की थी, जिसमें तकनीक और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसा मुद्दा केंद्र में था। जिसके बाद से ही संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष भारत के डिजिटलाइजेशन मॉडल के मुरीद हो गए। संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि डिजिटलाइजेशन महत्वपूर्ण है, यह लागत को कम करता है और अर्थव्यवस्थाओं को ज्यादा कुशल बनाता है, चीजों को सस्ता बनाता है। उन्होंने डिजिटलाइजेशन का उदाहरण दिया जिससे भारतीय महिलाओं और किसानों को देशभर में और दूर-दराज के स्थानों में बातचीत करने, बैंकों से निपटने और अपने घरों, खेतों या क्षेत्रों को छोड़ने के बिना भुगतान करने में मदद मिली। डेनिस फ्रांसिस ने कहा कि यह सब भारत की अर्थव्यवस्था को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद कर रहा है। इसलिए मुझे लगता है कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत को स्पष्ट रूप से लाभ हुआ। फ्रांसिस ने यह भी बताया कि अपनी भारत यात्रा के दौरान वह देश की तकनीक और बुनियादी ढांचे के विकास में किए जा रहे निवेश से प्रभावित हुए।

आस्था की सेतु बनी भारतीय रेलवे

अध्योया में राम लला मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व ही भारतीय रेलवे ने भी आम जनमानस को अवध नगरी में पहुंचाने के लिए सेतु संचार के रूप में खाका तैयार कर लिया था। जैसे ही 22 जनवरी, 2024 को अध्योया में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हुआ, उसके बाद क्या उत्तर, क्या दक्षिण। देश के हर दिशा से राम भक्तों को अध्योया पहुंचाने के लिए भारतीय रेलवे पूरी सक्रिय भूमिका में आ गई। भारतीय रेलवे के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जहां एक साथ इतनी संख्या में विशेष गाड़ियां किसी एक स्थान पर जाने के लिए अग्रिम आरक्षण के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू हुई हो। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अभी तक यह सिलसिला लगातार जारी है। सैंकड़ों की संख्या में देशभर से अभी भी रेलवे की विशेष गाड़ियां आरक्षित हो रही है। कई राज्यों से जिनती संख्या में लोगों ने विशेष गाड़ियों की जरूरत भेजी है, भारतीय रेलवे मुहिम करवाने में एकदम गाड़ियां उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है, जिसके कारण लाखों रामभक्तों को इंजतार भी करना पड़ रहा है। 

भारत में कुंभ मेलों के समय भी  इतनी संख्या में रेलवे को विशेष गाड़ियों को प्रबंधन नहीं करना पड़ता है, जिनती संख्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अध्योया के लिए प्रबंधन करना पड़ रहा है। इसी बात से यह स्पष्ट होता है, प्रभु श्रीराम के प्रति देश के जनमानस में कितनी आस्था है। जिसकी राह राम भक्त लगभग पांच शताब्दियों से देख रहे थे। आज के दौर में लोगों को अध्योया पहुंचाने में भारतीय रेलवे एक सेतु संचार की सबसे अहम भूमिका निभा रहा है, क्योंकि भारतीय रेलवे ही सबसे बड़ा माध्यम है। जिसमें सबसे ज्यादा संख्या में लोगों को एक साथ अध्योया पहुंचाया जा रहा है। हवाई मार्ग हर जनमानस के लिए संभव नहीं है, न ही अपने निजी वाहन। ऐसे में भारतीय रेलवे पर सबसे ज्यादा दारोमदार है, जिसे सेतु संचार की संज्ञा दी जाए तो वह कम होगी। 

देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से अध्योया के लिए चलने वाली विशेष रेलगाड़ियों की रवानगी से पूर्व स्थानीय स्तर पर प्रिंट सहित सभी मीडिया प्लेट फॉर्म पर कवरेज भी मिल रही है, जो भारतीय रेलवे को सेतु संचार के तगमे से नवाजने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा राष्ट्रीय सहित अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद भारतीय रेलवे द्वारा लोगों को अध्योया में रामलला के दर्शन के लिए चलाई जाने वाली गाड़ियों की सूचना सहित अन्य जानकारियां प्रतिदिन साझा की जाती रही। वहीं, देशभर में रेलवे की इस पहल को लेकर आम जनमानस में चर्चा का दौर भी जारी है, आज उनके पड़ोस से राम मंदिर दर्शन के लिए लोग जा रहे हैं या दर्शन कर वापिस आए हैं। जिसके बाद रेलवे की इस सुविधा और कैसे आरक्षण करना है, कितने बजट में दर्शन हो रहे है, यह दौर देशभर में चला है।

वेब सीरीज - अश्लीलता और फूहड़पन परोसने की आजादी

सिनेमा अब बड़े पर्दे से एकाएक छोटे प्लेटफॉर्म पर आ रहा है, जिसे वेब सीरीज का नाम दिया गया है। इन वेब सीरीज को बनाने में बजट भी कम लगता है और वेब सीरीज निर्माता जो परोसना चाहता है, उस पर भी ज्यादा रोक-टोक देखने को नहीं मिल रही है। 
जिस तरह एक साल में एकाएक वेब सीरीज की बाढ़ आई है, उसमें अश्लीलता और फूहड़पन भी बड़े स्तर पर दर्शकों को परोसा जा रहा है और जिस पर केंद्र सरकार और सेंसर बोर्ड का कोई कानूनी नियंत्रण नहीं है। मनोरंजन के नाम पर भारत के ग्रामीण परिप्रेक्ष्य को भी वेब सीरीज के माध्यम से बदनाम किया जा रहा है। कई वेब सीरीज में देश के गांव-देहात के बारे में काल्पनिक कहानियां परोसी जा रही है। इसके अलावा वेब सीरीज के प्लेटफॉर्म के तौर पर एप्स की भरमार आई है, जिस पर ये अश्लील वेब सीरीज बड़ी आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। 
कोरोना काल के लॉकडाउन में मनोरंजन के प्लेटफॉर्म के तौर पर ओटीटी का चलन बढ़ा है। पिछले कुछ साल से भारत में सक्रिय विदेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑरिजिनल सीरीज लाकर भारतीय हिंदी दर्शकों के बीच पैठ बनाने की कोशिश में जुटा है। वहीं, नेटफ्लिक्स, अलट बालाजी, उल्लू, मैक्स प्लेयर, एमेजोन प्राइम एप्स पर कई वेब सीरीज रिलीज हुई हैं। जिसमें कुछ एक वेब सीरीज को छोड़कर अधिकतर में अश्लीलता ही परोसी गई है। इन पर केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कोई नियंत्रण नहीं है, न ही सेंसर बोर्ड कोई कार्रवाई करने की दिशा में पहल कर रहा है। सिर्फ अलट बालाजी पर सेना के अधिकारी से संबंधित एक वेब सीरीज में अश्लीलता परोसने का मामला मीडिया और सोशल मीडिया पर उछला था, जिसके बाद एकता कपूर ने माफी मांगी। इसके अलावा किसी वेब सीरीज पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। न ही अश्लीलता से भरी वेब सीरीज बनाने वालों पर  रोक लगाने की दिशा में कोई पहल हुई। वर्तमान युवा वर्ग से लेकर हर कोई वेब सीरीज में दिखाई जाने वाले गाली-गलौज और अश्लीलता की गिरफ्त में आ चुके हैं। 
कई बु‌द्घिजीवी अब वेब सीरीज पर अंकुश लगाने की जरूर मांग उठा रहे हैं। सभी जानते हैं कि फिल्मों के लिए सीबीएफसी (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन)है जिसे प्रचलित धारणा में सेंसर बोर्ड माना जाता है। वास्तव में सीबीएफसी का काम फिल्मों को सेंसर करना नहीं है। वह एक ऐसी संस्था है, जो फिल्में देखकर सर्टिफिकेशन देती है कि कौन-सी फिल्म किस कैटेगरी (ए,यूए या यू)की है। कुछ निर्माता चाहते हैं कि उनकी फिल्में ए से यूए या यूए से यू की कैटेगरी में आ जाएं। फिर बोर्ड के सदस्य उन्हें सुझाव देते हैं कि फलां-फलां सीन और संवाद कम कर दीजिए या काट दीजिए, लेकिन वेब सीरीज की बाढ़ का रोकने और उसमें परोसी जा रही अश्लीलता को कम करने के लिए कोई ठोस कदम अगर केंद्र सरकार नहीं उठाएगी, तो आने वाले समय में स्थिति खतरनाक हो सकती है। वहीं, आपराधिक घटनाओं पर आधारित वेब सीरीज भी समाज को दूषित करने में अहम भूमिका निभा रही है। वेब सीरीज को लॉच करने के लिए कई एप्स प्ले स्टोर में उपलब्ध हैं, जिसे आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है। इन एप्स पर नियंत्रण करने में केंद्र सरकार के किसी तंत्र की कोई भूमिका अभी तक नजर नहीं आ रही है। वेब सीरीज के प्लेटफॉर्म में कोई भी आसानी से सब्सक्राइब कर सकता है। पेड वेब सीरीज को देखने के लिए युवा धड़ल्ले से सब्सक्राइब कर एप्स पर इन फिल्मों को देख रहे हैं। 
 

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बहाने कारसेवकों तक पहुंची मीडिया

22 जनवरी, 2024 के दिन जैसे ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने की तिथि निर्धारित हुई, उसके बाद देशभर का मीडिया तंत्र एक बार फिर सक्रिय होता दिखा। जिसके प्रमाण सबके सामने हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने मीडिया कारसेवकों या कारसेवकों के परिवारों तक पहुंचा। देशभर में प्रिंट और डिजिटल मीडिया में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व सैंकड़ों कारसेवकों की स्टोरी हमें देखने और पढ़ाने को मिली। कई कारसेवक तो गुमनाम ही थे, जिसके बारे में आज के दौर में ज्यादा लोगों को जानकारी ही नहीं थी। ऐसा की उदाहरण हिमाचल के मंडी शहर के एक वैद्य परिवार के दो सदस्यों है, जो राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या आए, लेकिन आज तक वापिस नहीं आए। वर्तमान युवा पीढ़ी अर्थात 35 वर्ष से नीचे आयु वर्ग वाले युवाओं के लिए कारसेवकों की इस प्रकार की कहानियां प्रकाशित होना किसी नए अध्याय के बारे में जानने के समान था, क्योंकि इस आयु वर्ग के युवाओं ने सिर्फ किसी के माध्यम से ही आधी अधूरी कहानियां ही कारसेवकों के बारे में सुनी थी या मीडिया के माध्यम से टीवी पर देखी थी। जहां तक राष्ट्रीय परिपेक्ष की बात की जाए तो राजनीति क्षेत्र के कुछ प्रमुख चेहरों के बारे में ही मीडिया राम मंदिर आंदोलन के बारे में दिखाता रहा है, लेकिन कई मीडिया समूहों ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व स्थानीय संस्करणों में कारसेवकों को प्रमुखत्ता से प्रकाशित किया। जिससे कारसेवकों या उनके परिवार के सदस्यों के बारे में जानने का वर्तमान युवा वर्ग को एक अवसर मिला। जिसमें प्रिंट मीडिया ने सबसे अहम भूमिका निभाई। इसके अनेकों उदाहरण हमें देखते को मिली। हिमाचल जैसे छोटे प्रदेश से भी राम मंदिर आंदोलन या 1990 और 1992 के बीच सक्रिय भूमिका निभाने वाले कारसेवकों के बारे में प्रिंट मीडिया में उस समय कोई ज्यादा खबरें प्रकाशित नहीं हुई है, क्योंकि उस दौर में हिमाचल में प्रिंट मीडिया नाममात्र की भूमिका में था। आज के दौर जैसे कोई मीडिया समूह यहां सक्रिय नहीं था। चंडीगढ़ या जालंधर से कुछ समाचार प्रकाशित होकर यहां आते थे, लेकिन अध्योया में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने हिमाचल के कारसेवकों के बारे में यहां के लोगों को जानने का एक मौका मिला, जिसमें मीडिया की सबसे अहम भूमिका रही है या यह भी बोल सकते हैं कि इस बहाने मीडिया हिमाचल के कारसेवकों या उनके परिवारों तक पहुंचा। जिनके बारे में हिमाचल के लोग कुछ नहीं जानते थे।