हरीश चन्द्र ठाकुर

वेब सीरीज - अश्लीलता और फूहड़पन परोसने की आजादी

सिनेमा अब बड़े पर्दे से एकाएक छोटे प्लेटफॉर्म पर आ रहा है, जिसे वेब सीरीज का नाम दिया गया है। इन वेब सीरीज को बनाने में बजट भी कम लगता है और वेब सीरीज निर्माता जो परोसना चाहता है, उस पर भी ज्यादा रोक-टोक देखने को नहीं मिल रही है। 
जिस तरह एक साल में एकाएक वेब सीरीज की बाढ़ आई है, उसमें अश्लीलता और फूहड़पन भी बड़े स्तर पर दर्शकों को परोसा जा रहा है और जिस पर केंद्र सरकार और सेंसर बोर्ड का कोई कानूनी नियंत्रण नहीं है। मनोरंजन के नाम पर भारत के ग्रामीण परिप्रेक्ष्य को भी वेब सीरीज के माध्यम से बदनाम किया जा रहा है। कई वेब सीरीज में देश के गांव-देहात के बारे में काल्पनिक कहानियां परोसी जा रही है। इसके अलावा वेब सीरीज के प्लेटफॉर्म के तौर पर एप्स की भरमार आई है, जिस पर ये अश्लील वेब सीरीज बड़ी आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। 
कोरोना काल के लॉकडाउन में मनोरंजन के प्लेटफॉर्म के तौर पर ओटीटी का चलन बढ़ा है। पिछले कुछ साल से भारत में सक्रिय विदेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑरिजिनल सीरीज लाकर भारतीय हिंदी दर्शकों के बीच पैठ बनाने की कोशिश में जुटा है। वहीं, नेटफ्लिक्स, अलट बालाजी, उल्लू, मैक्स प्लेयर, एमेजोन प्राइम एप्स पर कई वेब सीरीज रिलीज हुई हैं। जिसमें कुछ एक वेब सीरीज को छोड़कर अधिकतर में अश्लीलता ही परोसी गई है। इन पर केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कोई नियंत्रण नहीं है, न ही सेंसर बोर्ड कोई कार्रवाई करने की दिशा में पहल कर रहा है। सिर्फ अलट बालाजी पर सेना के अधिकारी से संबंधित एक वेब सीरीज में अश्लीलता परोसने का मामला मीडिया और सोशल मीडिया पर उछला था, जिसके बाद एकता कपूर ने माफी मांगी। इसके अलावा किसी वेब सीरीज पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। न ही अश्लीलता से भरी वेब सीरीज बनाने वालों पर  रोक लगाने की दिशा में कोई पहल हुई। वर्तमान युवा वर्ग से लेकर हर कोई वेब सीरीज में दिखाई जाने वाले गाली-गलौज और अश्लीलता की गिरफ्त में आ चुके हैं। 
कई बु‌द्घिजीवी अब वेब सीरीज पर अंकुश लगाने की जरूर मांग उठा रहे हैं। सभी जानते हैं कि फिल्मों के लिए सीबीएफसी (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन)है जिसे प्रचलित धारणा में सेंसर बोर्ड माना जाता है। वास्तव में सीबीएफसी का काम फिल्मों को सेंसर करना नहीं है। वह एक ऐसी संस्था है, जो फिल्में देखकर सर्टिफिकेशन देती है कि कौन-सी फिल्म किस कैटेगरी (ए,यूए या यू)की है। कुछ निर्माता चाहते हैं कि उनकी फिल्में ए से यूए या यूए से यू की कैटेगरी में आ जाएं। फिर बोर्ड के सदस्य उन्हें सुझाव देते हैं कि फलां-फलां सीन और संवाद कम कर दीजिए या काट दीजिए, लेकिन वेब सीरीज की बाढ़ का रोकने और उसमें परोसी जा रही अश्लीलता को कम करने के लिए कोई ठोस कदम अगर केंद्र सरकार नहीं उठाएगी, तो आने वाले समय में स्थिति खतरनाक हो सकती है। वहीं, आपराधिक घटनाओं पर आधारित वेब सीरीज भी समाज को दूषित करने में अहम भूमिका निभा रही है। वेब सीरीज को लॉच करने के लिए कई एप्स प्ले स्टोर में उपलब्ध हैं, जिसे आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है। इन एप्स पर नियंत्रण करने में केंद्र सरकार के किसी तंत्र की कोई भूमिका अभी तक नजर नहीं आ रही है। वेब सीरीज के प्लेटफॉर्म में कोई भी आसानी से सब्सक्राइब कर सकता है। पेड वेब सीरीज को देखने के लिए युवा धड़ल्ले से सब्सक्राइब कर एप्स पर इन फिल्मों को देख रहे हैं।