मौनस तलवार

एप्स प्रतिबंध: पता चल गया है चीन की जान किस तोते में बसती है

भारत-चीन के मध्य हुए हालिया सीमा-संघर्ष के बाद 59 चायनीज एप्स को बैन किए जाने के बाद चीन पहली बार चिंतित हुआ। वहां के विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान आया कि चीन इस घटनाक्रम को लेकर चिंतित है। इससे पहले चीन ने पूरी तरह आक्रामक मुद्रा अपनाए हुए था। एप्स बैन किए जाने के बाद उसे व्यापार के वैश्विक नियमों की याद आई, उसने निजता के कानून की दुहाई दी और इससे भी अधिक यह कि वह भारतीय हितों को लेकर फिक्रमंद हुआ। ग्लोबल टाइम्स की तरफ से इस घटनाक्रम के बाद एक रोचक टिप्पणी आई थी कि भारत सरकार का यह कदम भारतीय हितों के अनुकूल नहीं है।

10 वर्ष पहले तक इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि एप्स को इंस्टाॅल करना, अनइंस्टाॅल करना, एप्स को बैन करना भी युद्ध का अहम हिस्सा बन जाएगा। आपके द्वारा उपयोग मे लाई जाने वाली सोशल मीडिया साइट्स आपकी अभिव्यक्ति का साधन भर नहीं है, बल्कि उनका सीधा सम्बंध राष्ट्र की सुरक्षा से भी है। इसीलिए जब 59 चीनी एप्स के ऊपर बैन लगाया गया, तो कई लोगांे ने सवाल उठाए कि एप्स बैन करने से क्या हो जाएगा ? इससे चीन को मामूली आर्थिक नुकसान के अतिरिक्त और किसी तरह का घाटा नहीं होगा। उनके इस तर्क का उत्तर तो कुछ दिनों बाद ग्लोबल टाइम्स ने खुद ही दे दिया कि अकेले टिकटाॅक को बैन करने से टिकटाॅक की पैरेंट कम्पनी को 6 बिलियन डाॅलर का नुकसान होगा।

इस आकंडे को रणनीतिक-परिप्रेक्ष्य में रखकर समझने की कोशिश की जाए तो एप्स बैन की घटना की अहमियत समझ में आती है। यह राशि भारत और रूस के बीच घातक मिसाइल डिफेस सिस्टम एस-400 के लिए हुए समझौते में खरीद की राशि के लगभग बराबर है। एस-400 के समझौता और इसका भारत आना कितना निर्णायक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानी मीडिया और सत्ता-प्रतिष्ठान कई बार यह कह चुका है कि एस-400 मिलने के बाद भारत-पाक के बीच कायम शक्ति-संतुलन एकदम से भारत की तरफ झुक जाएगा। यह वही एस-400 है, जिसको जल्दी देने के भारत के आग्रह पर चीन ने रूस से आपत्ति दर्ज कराई था। इस परिप्रेक्ष्य में टिकटाॅक को बैन लगाने की प्रक्रिया को समझने से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत ने कितना बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया है।

एप्स बैन के कारण चीन को हुआ आर्थिक नुकसान एकपक्ष है। इसके कारण भारत ने पूरी दुनिया को एक बहुस्तरीय मैसेज दिया है। यह मैसेजिंग कितनी प्रभावी है, इसका आकलन भारत में ठीक ढंग से नहीं किया गया। भारत ने एप्स प्रतिबंधित करके एकझटके में पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि चीनी तकनीकी सुरक्षा के लिहाज से अविश्वसनीय है। चीन की छवि को अविश्वसनीय और संदिग्ध पहले से भी माना जाता रहा है, लेकिन अमेरिका जैसे देश भी औपचारिक और नीतिगत स्तर पर कुछ खास नहीं कर पा रहे थे। चीन का दबाव उन पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। भारत ने चीनी दबाब की चादर को एक झटके मे छिन्न-भिन्न कर दिया।साथ ही, नीतिगत-स्तर पर अपनी वैश्विक-नेतृत्व के लिए दावा ठोंका।

भारत और चीन के बीच चल रहे संघर्ष का एक मुख्य कारण वैश्विक-नेतृत्व पर दावेदारी भी है। और एप्स प्रतिबंधित करने की परिघटना के जरिए भारत ने अपनी दावेदारी को मजबूती प्रदान कर दी है। गलवान के ंसघर्ष का षड्यंत्र चीन ने इसलिए रचा था ताकि विश्व को यह संदेश दिया जा सके कि भारत कमजोर है और नई विश्व-व्यवस्था में चीन ही एशिया का नेतृत्व करेगा, भारत ने एप्स बैन कर चीन के दांव का उलट दिया ।

रोचक बात यह है कि अभी तक भारत में यह उदाहरण दिया जाता था कि अमेरिका अपनी सुरक्षा के लिए फलां कदम उठा सकता है, तो हम क्यों नहीं कर सकते ? इजरायल अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठा सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते ?एप्स प्रतिबंधित करने की घटना ने इस तर्क को उलट कर रख दिया। अमेरिका में यह मांग उठी कि भारत एप्स को प्रतिबंधित कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते? भारत के निर्णय के बाद अमेरिका ने हुवई को प्रतिबंधित किया और बाद में ब्रिटेन ने भी इस दिशा में कदम उठाए।

एप्स प्रतिबंधित करने के निर्णय और उसके प्रभाव ने इस बात की तश्दीक करते हैं कि युद्ध अब कितना जटिल हो चुका है, डिजिटल स्पेस युद्ध के अहम और निर्णायक मैदान में तब्दील हो चुका है। युद्ध की इस नई शैली में विजय उसी को हासिल होगी, जिससे शत्रु के मर्मस्थलों और शक्तिकेन्द्रों की सटीक जानकारी होगी। नीतिगत स्तर पर इन मर्मस्थलों पर प्रहार कर रक्त की एकबूंद गिराए बगैर शत्रु को औंधे मुंह गिराया जा सकता है। भारतीय नेतृत्व ने फिलहाल यह साबित किया है कि उसे चीन के नाजुक मर्मस्थल का पता है, उसे पता है कि चीन की जान किस तोते में बसती है और उस पर कैसे  और कब वार करना है।